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-4७.२८. १२ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित मुउ सम्वत्थ सिद्धि संपत्तउ सवत वि पावै णरइ णिहित्तछ । सत्चमि वमतमयहि भीसावणि पंचपयारदुषस्वदरिसावणि । पत्ता-धावइसंडा सुरवरदिसहि मेरुहि परविदेहि सरइ ।।
गंधिजदेसि उन्झारिहि णरवइ अरुहदासु बसह ॥२७॥
कामहुयासहुणे कालंबिणि सुन्वय णामें तासु णियबिणि। अवेर वि तह जिणयत्त घरेसरि । अमरमहामयरहरहु णं सरि। अच्चुयचुय तेएं णं दिणयर रयणमाल रयणावह सुरवर । बिहिं वि बेण्णि संजणिय तणूरुह विजय विहीसण णवपंकयमुह । ते बेणि मि णं छणससिसायर ते बेण्णि वि बलकेसव भायर । बीयहु णरयह गयष्ट विहीसणु दुद्धरु तउ करेवि संकरिसणु। लंतवि जायत देउ महामह आइचाह ह जि सो मुछ्याह । सम्ममासासगिला
मई नवोदित यह णिग्गड ! जंबुदीवएरावयउज्झहि
सिरिवम्महु सीमहि तणुमज्झहि । सो केसवु दुई मुंजिचि आयउ लछिछधामु णामें सुख जायउ। रिसिहि विणासियवम्महलीला चिरु पाषइयर पासि सुसीलहु ।
पत्त भकप्पि मेझिवि तणु अट्ठगुणट्टिकंतु देवत्तणु । करते हुए बतायुषको देखा और उसे मार डाला। वह भरकर सर्वार्थसिद्धि पहुंचे। वह भील भी मरकर, भयंकर पांच प्रकारके दुःखोंका प्रदर्शन करनेवाले तमसमप्रभा नामक सातवे नरकमें डाल दिया गया।
पत्ता-घातकोखण्ड में पूर्वदिशा, सुमेरुपर्वतके अपर विदेहमें गन्धिल देशको अयोध्या नगरीमें भोगयुक्त राजा अहंदास रहता था ॥२७।।
२८ कामदेवकी अग्निको शान्त करनेवाली मेषमालाके समान उसकी सुनता नामकी पत्नी थी और भी उसको जिनदत्ता नामको गहेश्वरी थी, जो मानो क्षीरसमुद्र के लिए नदी हो। अच्युत स्वर्गसे च्युत होकर और तेजमें मानो दिवाकरके समान रत्नमाल और रत्नायुष सुरवर भाग्यसे दोनोंके पुत्र हुए-नवकमलके समान मुखवाले विजय और विभीषण नामसे | वे दोनों ही पूर्णचन्द्रमा और समुद्र थे, वे दोनों हो बलभद्र और नारायण थे। विभीषण दूसरे नरफ गया और बलभद्र दुर्धर तपकर महाआदरणीय लान्तब देव हुआ । सुखावह बहो में आदित्य नामका देव हूँ। मेरे द्वारा सम्बोषित होनेपर सम्यग्दर्शनके शासन में लगकर वह नरकसे निकला और जम्बूद्वोपके ऐरावतक्षेत्रको अयोध्या नगरी में वह केशव दुःख भोगकर आया और श्रीवर्माको कृशोदरी पत्नी सीमासे श्रीधर नामका पुत्र हुआ। कामदेवकी लीलाका नाश करनेवाले सुशील मुनिके पास उसने दीक्षा ली । और शरीर छोड़कर ब्रह्म स्वर्गमें आठ गुणोंमें निष्ठा करनेवाले देवत्वको प्राप्त हुआ।
२८. १. AF सुवस्य । २. AP अवरु वि । ३. A गंदण ससिसायर ।
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