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महाकवि पुष्पदन्त विरचित पूसि सायण्हए रहिउ रइतण्हए। छहउबवासओ करिवि णिहिवासओ। णिवसहससंजुओ मुणिवरिंदो हुओ। खतिर्कतापिओ तुरियणाणकिओ। पुरि अरविचिसए 'पाडलीउत्तए। भमिड पिंडस्टिओ विणयणविओ थिओ। धण्णसेणालए
ढोइयं कालए। भोयणं''फासुयं सम्वदोसच्चुयं । जायपंचन्मयं दाणममरत्थुयं ।
सहइ तवतावर्ण करइ गुणभावणं । पत्ता-उवसंतइ मच्छरि गइ संवच्छरि खाइयभावहु भाइल ।।
फुल्तपियालउं तुंगतमाल तं सालवणु पराइउ ||५||
तहिं सत्तच्छयतरुहि तलि खगडलमहुलि। छट्टषवासालकिय
अविसंकिया। पूसरिक्खि छणससिदिवसि हइ कम्मरसि। अवरहा हूयउ सयलु
केवलु विमलु। आयल तुरिय सतियसयणु दससयणयणु। शिविकामें बैठकर, कामको जीतकर घरसे निकल गये और शालवनमें पहुंचे। माघ शुक्ला प्रयोदशीके दिन सायंकाल पुष्यनक्षत्रमें रतिकी तृष्णासे रहित कर्मको सामथ्र्यका नाश कर, छठा उपवास कर एक हजार राजाओंके साथ दोक्षित हो गये। क्षान्तिरूपो कान्तिके प्रिय चार जानोंसे अंकित वह घरोंसे विचित्र पाटलिपुत्र नगरमें आहारके लिए घूमे। शिष्टतासे नम्र वह राजा धन्यषेणके प्रासादमें पहुँचे। उस अवसरपर उन्हें प्रासुक तथा सब प्रकारके दोषोंसे च्युत भोजन दिया गया। पांच प्रकारके आश्चर्य हुए। वह दान देवोंके द्वारा संस्तुत था। वह तपसे सन्तप्त उनकी श्रद्धा करता, गुणोंकी भावना करता है।।
पत्ता-ईभिाव समाप्त होने और एक साल बीतने में वह क्षायिक भावपर स्थित हो गये। जिसमें प्रियाल वृक्ष खिले हुए हैं और जिसमें ऊंचे-ऊँचे तमालवृक्ष हैं, ऐसे शालवनमें यह पहुंचे ॥५॥
वहाँ पक्षि-समूहसे मुखरित सप्तपर्ण वृक्षके नीचे, छठे उपवाससे शोभित, विशंकाओंसे रहित, पूष शुक्ल पूर्णिमाके विन, कर्मकी सामर्थ्य नष्ट होनेपर अपराहमें विमल समस्त केवलज्ञान
4. A पिलिपासयो। ९. A पुरघर । १०. AP पाञ्जलीयुत्तए । ११. AP पासुयं ।। १. १. AP मुहलि । २. AP add after this: देवे सयरायर मुणिलं, अगु जाणियां (A omits
जगु जाणियठं ); खणि जाश्य (A जाइयउ ) देवागमणु, छह ( A सुण्णय ) गयणुः गाणाविहहि पहाइयहि, अपराइयहि; संथुउ देउ सुरासुरहिं, मलियारहि; K gives these lines but scores them off. ३. A तुरिन ।