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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
अलयाणा वढिय कामट्टू । पत्ता-सो पुण्यं दिवि देवसुद्धं माणिवि हविहलत्तणकं । free afterएं विडियउ पुणु पत्तष्ठ महिलखणडं ||१२||
- ५७ २०.१२]
दिण्णी पिणा दरिसियणामनु
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दरिसियराएं हुई बुहहर दिणी ताएं कामात सीसे करि सिरिहरु भणियड सिवे दणु संमार्णिवि औदरिसेण पासि यदहु
यहुँ सिरिजसह विणीयs मुचिरणारविंदमइयहि पवणुधूयध बलधय मालडं थावरजंगमविरइयमेत्तिइ तहिं हरिचंद महार पेक्खिवि
पत्ता - सो आयहिं सिरिहरजसहरहिं दोहिं वि गिरिगरयंगु गुणि || गुहकुहरि णिण्णु णिरिक्खियल पलियकेण णिसण्णु मुनि ||२०||
सिरिहराहि सुय णामें जसहर । दिreरापुरि सूरासहु । जो लो एयहिं बोहिं मि जणियउ । सिर ढोइवि सिरिकलसहिं ण्हाणिनि । लक्ष्यस व जइहु मुणियंदछु । पावट वहिं मायाधीवड | पासु वसतियाहि गुणमइयहि । सिद्धसिहरु णामेण जिणालउं । किरण गणत्ति | fre अप्पर रिसिदिक्खर दिक्खिवि ।
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करवाली श्रीधरा नामको कन्या हुई। पिताने उसे, जिसकी कामनाएं बढ़ी हुईं हैं ऐसे अलकापुरी के राजाको दे दिया |
धत्ता - वह पूर्णचन्द्र स्वर्ग में देवसुख मानकर, च्युत होकर अपने कर्मविपाकसे जिसने दारिद्रयको नष्ट कर दिया है, ऐसे स्त्रीत्वको पुनः प्राप्त हुआ ||१९||
६. विश्वविद्दत्तणवं ।
२०. १. Pसिर २ A आदरसेण । ३. P हृदं । ४. AP मुणिचंद ५. A कुहरणिसण्णु ।
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यह राजा दर्शकसे श्रीधरा रानीको दुःखहरण करनेवाली यशोधरा नामको कन्या हुई । वह सूर्याभपुर (पुष्करपुर ) के काममें आसकल राजा सूर्यावर्त को दी गयी। जो सिंहसेन (राजा) श्रीधर कहा गया, वह इन दोनोंसे रश्मिवेग नामका पुत्र हुआ। रश्मिवेगका सम्मान कर, उसे सिरपर उठाकर एवं श्रीकलशोंसे अभिषेक कर राजा दर्शकने द्वन्द्वोंका नाश करनेवाले मुनिचन्द्रके पास जब संन्यास ले लिया, तो माँ और बेटी विनीता श्रीधरा और यशोधराने भी मुनियों के चरणारविन्दमें जिनकी बुद्धि तीव्र है, ऐसी गुणमतो वसन्तिका आर्यिकाके पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। जिसपर पवन धवल ध्वजमालाएं आन्दोलित हैं ऐसा सिद्ध शिखर नामका जिनालय था । स्थावर और जंगम प्राणियों के प्रति जिसमें मित्रताका भाव है ऐसी वन्दनाभक्ति के लिए रश्मिवेग वहाँ गया। वहीं आदरणीय हरिश्चन्दको देखकर वह स्वयं मुनिदीक्षा लेकर स्थित हो गया ।
पत्ता - गिरिको तरह अत्यन्त ऊंचे तथा पर्यकासन में आसीन गिरिगुहा में बैठे हुए उन मुनिको इन दोनों श्रीधरा और यशोधराने देखा ||२०||