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महापुराण
[ ४८.७..बुद्धि कवी सिरी
लच्छि 'कित्ती हेरी। गमसुद्धीयरी
अमरवरसुंदरी। मत्तगयगामिणी
राइणो सामिणी। ताहि संसे दिया
तिस्थणाहं बिया। दुक्खपक्खक्खया
हेमवुट्टी कया। वित्तएणं सयं
जाप छम्मासयं । आइमासंतरे
किण्हएक्खंतरे। अटूमीवासरे
रविकिरणभासुरे। रिक्खर रूढए
उत्तरासाढए। माउयासंगओ
गम्भवासं गओ। तस्थ जंभारिणा
वेरिसंधारिणा। मणि
पुंजियं देपई। सोत्तको डीसमे
वारिहीणं गमे। जाणविद्धस यं
पल्लचोत्थंसयं। संजमे संमए
ण?ए धम्मए। पुप्फरतको
iTET परे। छोणमौलंकणे
बारसिल्ले दिणे। गंददेवीसुओ
विस्सजोए हुओ। तांव संतोसिओ
आगओ कोसिओ। अग्गि वाऊ"सही दंडधारोवाही। रिंछवाहो परो
वारुणासामरो। पोमसंखाहियो
सूलपाणी भयो। चमर यइरोयणो
भाणु मयलंछणो। सयल देवा रणे
तूसमाणा मणे । आगों तं पुरं
राइणो मंदिरं। राजाको स्वामिनी तीर्थंकरको माताको उन्होंने सेवा की। कुबेरने स्वयं दुखपक्षका नाश करनेवाली स्वर्णवृष्टि छह माह तक को। चैत्र माह के कृष्णपक्षके सूर्यको किरणों से आलोकित अष्टमीके दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्रके रूढ़ होनेपर, वह माताके उदरमें गर्भवासको प्राप्त हुए। उस अवसरपर शत्रुओं का संहार करनेवाले इन्द्रने स्वामीको मानकर दढ़रथ --तिकी पूजा की। नौ करोड़ प्रमाण सागर, समय बीतनेपर, तथा पल्यके चौधाई भाग तक (जन्मके पूर्व) ज्ञानका विध्वंस, संयम और सम्यक्त्व और धर्मका नाश होनेपर पुष्पदन्तके बाद माघ कृष्ण द्वादशीके दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्रके विश्वयोगमें नन्दादेवीको पुत्रकी उत्पत्ति हुई। इन्द्र अत्यन्त सन्तुष्ट होकर आया, अग्नि वायु और इन्द्रसे भयभीत यम रीछपर सवार एक और देव, वारुण सामर कुबेर शूलपाणि शिव चामर वैरोचन सूर्य और चन्द्र आदि सभी देवता मनमें सन्तुष्ट होकर, राजाके उस घर आये। ७. १. A कित्ति । २, A कति । ३. AP हिरी | ४. P भामिणी । ५. A कपाखंतरे । ६. AP पई।
७. AP पुन्जिओ दंपई । ८. A"विखंसिय। ९.A संयमे। १०. A छोलमालंधणे but records a Pin second hand : झोणमयलं ठणं इतिचापाठः । ११. सिहो। १२. A विहीं । १३. A वारुणो सामरो । १४.A आग तं परं ।