________________
१६४
५
१०
५
महापुराण
११
कंकहि सिवियहि चडिवि चलिउ ओणु सण महंतु माहम्मि मासि तिमिरेण कालि छोषषासु सैइ करेबि अवरहि दिणि णहयललग्ग सिंहद पत्र पनि गि ure परिहs ची घत्ता -
रंगरिदुर्षु घरइ पिणाच हुंकारु ण देश ण
पण गडइ ण दाइ ढकलद्दु सुरबहुरपण रइयाई जाई क वे पहणणडंभु बहु का वि भणइ ड चकपाणि नारायणु एहु ण होइ मात्र
[ ४८. ११. १
सुरयणु जयजय पभणंतु मिलिड | रियावरणई कम्मई खरंतु ।
मइ दिनि जायें वियालि । स रायसहा दिक्ख लेखि । भिक्खाइ परिणयरु | one as पत्ति पडिए । बहु का वि भइ देहि णारि । उ फणिकंकणु फुरिय करू ॥ चार गेयसरु ||११||
१२
बहु का वि भइ र पहु रुदु । वयणाई णत्थि चत्तारि ताई । बहु का विभs is हु बंभु । ण पजइराणच पाणहाणि । जामि विखाय भुषणभाइ ।
११
शुक नामकी शिविकामें चढ़कर वह चले। सुरजन जय-जय कहते हुए इकट्ठे हो गये । चारित्रावरणकर्मीका नाश करते हुए वह महान् सहेतुक उद्यानमें उतरे। माघ कृष्ण द्वादशीके दिन, सन्ध्शकालमें श्रद्धासे छठा उपवास कर एक हजार राजाओंके साथ दीक्षा लेकर दूसरे दिन जिसके अग्र शिखर आकाशसे लगे हुए हैं, ऐसे अरिष्टनगर में भिक्षा के लिए गये। ( उन्हें देखकर कोई वधू कहती है ) – कि इनका हृदय शून्यसे निर्मित नहीं है, ( यह शून्यवादी नहीं हैं ), यह अपने पात्रमें पड़े हुए पल (मांस) को नहीं खाते। रंगसे समृद्ध यह चीवर नहीं पहनते हैं ? कोई वधू कहती है कि यह युद्ध नहीं हैं। इनके पास तलवार नहीं है, यह कंकाल धारण करनेवाले नहीं
हैं, न इनके हाथ में कपाल है और न शरीरमें स्त्री है ।
बत्ता - यह पिनाक धारण नहीं करते, न नागोंका कंकण और स्फुरित हाथ है ? यह न हुकार देते हैं और न गीतस्वरका उच्चारण करते हैं ? ॥११॥
१२
न नृत्य करते हैं और ढक्का शब्दका प्रदर्शन करते हैं। कोई वधू कहती है कि यह रुद्र नहीं है। सुरवधू ( तिलोत्तमा अप्सरा ) के द्वारा जिनकी रचना की गयी है, ऐसे वे चार मुख इनके नहीं हैं, पशुवध अहंकारवाले वेदोंका कथन भी यह नहीं करते। कोई वधू कहती है कि यह ब्रह्मा नहीं हैं। कोई बघू कहती है कि यह चक्रपाणि (विष्णु) नहीं हैं-क्योंकि यह दानवोंके प्राणोंकी हानिका प्रयोग नहीं करते हैं, हे माँ, यह नारायण नहीं हैं, में इन्हें विख्यात विश्वबन्धु जानती
११. १. AP सुक्
। २. A ओयण्णु P अव ६. P फलु । ७, A णियपत्ति पनि । ८. A रिदु । १२. १. P । २. K प्राणहाणि । ३ AP जाणिषि ।
P बारहव । ४. A जाय। ५. P सबइ ।