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-५५. ११. १४ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित सहसाई तिणि लेसासयई वाइहिं विद्धसियपरममई। संजइयतुं लक्खु तिसहससहि सावयह लक्खजुयलाई कहिलं । परियाणियजिणगुणपरिणहि इनारि लकरत महु सावयादि । तियसेहि असंखहि वंदियाल संखेजतिरियअहिणंदिया। तिवरिसरहियई णडियच्छरहं पण्णारह लक्वई संवच्छरह। महि हिडिवि लोयति मिरु लुहिवि संमेयह सिहर समारुछिवि । पत्ता-आसाहमिहि कसणहि तमिहि परमप्पउ णिशालु हुई।
भरहमहीवइहिं फणिसुरवइहिं विमैलु पुप्फदतहिं थुई ॥११
इवि महापुराणे तिसहिमहापुरिसगुणालंकारे महाकहपुरफर्षतविरहए महामन्वभरहाणुमण्णिए महाकावे विमलणाहणियाणामर्ण
णाम पंचधण्णासमो परिच्छेभो समतो ॥५५॥
थे। तीन हजार छह सौ परमतका. विध्वंस करनेवाले वादी मुनि थे। एक लाख तीन हजार सयमको धारण करनेवाली आयिकाएं थीं। दो लाख श्रावक कहे गये हैं। जिनवरके गुणोंको परिणतिको जाननेवाली चार लाख श्राविकाएं थीं। असंख्यात देवोंके द्वारा वह वन्दनीय थे। और संख्यात तियंचसमूह द्वारा वह अभिनन्दनीय थे। तीन वर्षे रहित, डियग्छर ( जिनमें अप्सराएं नत्य कर रही हैं. या जो अप्सराओंको वंचित करनेवाली हैं?) पन्द्रह लाख वर्षे धरतीपर परिभ्रमण कर लोकान्धकार नष्ट कर सम्मेद शिखरपर आरूढ़ होकर
धत्ता-आषाढ़ माहके कृष्णपक्षको अष्टमीके दिन, ( उत्तराषाढ़ नक्षत्र में ) भरतको भूमिके राजाओं, नागराजाओं, देवेन्द्रों और नक्षत्रों द्वारा स्तुत कह विमल निष्कल परमात्मा हो गये ॥११॥
इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त, महापुराण, महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रश्चित एवं महामम्ब मरवद्वारा अनुमत महाकाव्य में विमलनाथ निर्वाण
गमन नामका पचपनवा परिच्छेद समाह हुभा ॥५५॥
२. AP इवउ । ३. विमल । ४. AP यय। ५. A पंचा।