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संधि ५७
पुणु भाइ गोत्तम सेणियहु दुद्धर दुक्ख किलेस मह || सिरिबिमलणाहजिणगणहरई मंदर मेरुहुं तणिय कह ॥ध्रुवकं ।
जंबूदीवs अरविदेहव मंदचूयव विविणिचार देसुगंधमा लिपि जाणिजइ भमरहिं वियलंत महु पिज्जइ जहिं माहिसु सरसलिल अंतरि अहिणवपलव बेलीभवणइ गंधसालिपरिमल दिस वासइ निवि छेत्तवालिणि मुख जहिं कूरकरंब
दहि
मानव मिहुयषड् दियणेहइ । सीओ यात्ततीरs | गाइ कंगुणि जहि चिजइ । पक्खिहि कलरवु जाई विरहज्जइ । हाइपरपंकयरयपिंजरि । गोव सुबंति पुष्कपत्थरणइ । पूस कं धुणंतु जहिं वासइ । जहिं पंथिय चवंति सरसुाउं । पवई पवहि जिम्मइ अंयंत्र ।
पता - तहिं देसि रवण्णु सुवण्णमउ णविलग्ग मंदिर सिहरू ॥ परिहापायारहिं परियरिक्ष वीयसोत णामें जयरु || १ ||
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सन्धि ५७
पुन: श्री गौतम, श्रेणिकसे श्री विमलनाथ जिनके गणधरों- - मन्दर और मेरुकी दुर्धर दुखोंको नष्ट करनेवाली कथा कहते हैं ।
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जम्बूद्वीप में जहाँ मानव जोड़ोंका स्नेह बढ़ रहा है, जहाँ मन्द आम्र चव दिचिणी और चारके वृक्ष हैं, ऐसे अपरविदेहमें सीता नदीके उत्तर तटपर गन्धमालिनी देश जाना जाता है । जहाँ गायोंके द्वारा कंग और कणिश ( अनाज ) खाया जाता है । भ्रमरोंके द्वारा झरता हुआ मद पिया जाता है, और पक्षियोंके द्वारा कलरव किया जाता है। जहाँ महिषगण प्रचुर पंकजरजसे विजरित सरोवरोंके जल में नहाता है। अभिनव पल्लव और लताओंके भवनों में ग्वाले पुष्पशय्याओंपर सोते हैं । गन्धसे श्रेष्ठ पराग जहाँ दसों दिशाओंको सुवासित करता है। जहाँ सुआ 'के' शब्द कहता हुआ निवास करता है। जहाँ क्षेत्रकी रक्षा करनेवाली कृषक बालिकाओंके मुख देखकर पथिक मधुर और सरप गीत गान करते हैं । जहाँ भातसे मिला हुआ अत्यन्त खट्टा दही प्रत्येक प्याऊ पर खाया जाता है !
घत्ता — उस देश में सुन्दर स्वर्णमय मन्दिर शिखरोंसे आकाशको छूनेवाला तथा परिक्षाओं और प्राकारोंसे घिरा हुआ वीतशोक नामका नगर है ॥१॥
१. १. AP चुयचविं । २. A गंधुमणि । ३. A पूसउ कण चुर्णतुः P पूस कणु तु ।