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संपers पमणाहु करिवि reas रिसिदिres दिक्खिय
महापुराण
सुभिववासकिलेसहरु मुमुक्काहरु बिसुद्ध मह अट्ठारह जल हिपेमा उधरु मास एक सो सस वणवस संवर जावजण महिता पाणगई ते दीहु कालु दिवि संचरि हुँ पढमिंदे लक्खियजं
इह भर खेति कंपिल्लपुरि
आरंभडंभविहि परिरिवि । ture अंगई सिक्खियद ।
पत्ता-मलु उड्डाविय समु भावियत्र पंकय सेर्णे घणघणु ॥ पक्खि व पंजरइ दुक्किय विरइ धम्मज्झाणि धरिउँ म ||२||
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[ ५५. २. ९ -
आवनिवि तित्थयरत्तयन ।
हुन सहसार सहसा रषइ । चरणिसरीरु अरोयजरु | परमी वर मणेण सइ । सुहुं जगह णिएवि मुहुं अच्छरहं । तहु गुण किं चण्ड़ खंडकर | जयहुं अयनंतर वरिजं । सहसति कुबेर अक्खियजं । पुरुदेववंसि विन्हवियेसुरि । पं विहिप कमविति कय ।
कयता राहु घरज
घन्ता - ताहं महागुणहं वेणि वि जण होसइ भवणि भंडार || अट्ठारहहं शियदोस स्वयगार || ३ ||
कम्ममोर
नाथको सम्पत्ति स्थानवर नियुक्त कर आरम्भ और दम्भकी विधिको छोड़कर स्थित हो गया। मुनिदोक्षासे दोक्षित उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया ।
यत्ता - पद्मसेनने मलका नाश किया, समताका सघन चिन्तन किया। पिंजड़े में स्थित पक्षीकी तरह पाप से विरत धर्मध्यानमें उसने मन लगाया ॥२॥
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संसारवासके क्लेशको दूर करनेवाले पुण्य और तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध कर निराहार विशुद्धमति वह मर गया तथा सहस्रार स्वर्ग में इन्द्र हुआ। उसको आयु अट्ठारह समुद्र प्रमाण यो । ज्वर और रोगसे रहित उसका चार हाथ शरीर था। नौ माह में एक बार वह साँस लेता । अट्ठारह हजार वर्ष में मनसे परमाणुओं का भोजन करता, अप्सराओंका मुख देखनेसे उसे सुख उत्पन्न हो जाता। जहाँ तक अंजनाभूमि ( नरकभूमि ) है वहाँ तक उसके ज्ञानको गति है। यह खण्डकवि पुष्पदन्त उसके गुणोंका क्या वर्णन करता है। वह लम्बे समय तक स्वर्ग में संचार करता रहा। जब उसके छह माह शेष बचे तब प्रथम स्वर्गके इन्द्रने जान लिया और अचानक कुवेरसे कहा, "इस भरत क्षेत्र के कापिल्य नगर में देवोंको विस्मित करनेवाले पुरुदेव वंशमें कृतवर्मा नामका राजा है, उसकी गृहिणी जया है जो मानो विधाताने कामदेवको वृत्ति बनायी हो ।
पत्ता- महागुणवाले उन दोनोंके घरमें आदरणीय जिन उत्पन्न होंगे, कमौके मनोरथों और अट्ठारह अपने दोषोंका क्षय करनेवाले ॥३॥
७. AP परियत ।
३. १. P " जलहिपरमाउँ । २. A उरण | ३. A परमाणुवरसुमणेण । ४ A सहस । ५. Ad ६.AP विभइयर । ७. AP दोहं मि