________________
२०६
१०
ર
आसंदी हरिणरायारिय णाइणिगिश्चंत गेयमुकु मणिरासि सिहाहिं फुरंतु सिद्दि
महापुराण
पय पुंडरी यजुयणैविचसुरु मयरद्धयधय जिल्लूरण दाए जिम्मsas जयदेवहि देहु पसंसियड छम्मासु मधाराधरहिं जेट्ठहु मासड्डु तमदसमिदिणि रयणेहिं सुरेहिं संधुचरि हिलसस विकलं पयडिय जयहुँ सायरसम तीस गय पण मिरि कंचचूलाल हरि
अमरिंदवसहिपहपरियरिय | बाईबहुकेर छु । सिविणोलि निहालिय दिष्णदिहि |
धत्ता-सा सीमंतिणिय पीणत्थनिय दंसणु दश्यहु भासइ ॥ देवे राहिवर पडिबुद्धमइ तं फलु ताहि समास ||५||
६
अरहंतु अनंतु तिलोयगुरु । परमेसरि होस तु तणच । प्रत्यंतर आयद अच्छर । भादो हिंसिथठ । वरिसिट अक्खहिं णं जलद्दरहिं । उत्तरभवइ हिमकिरणि । after for समोयरिङ । नवमास पुणु वि वसु विडिय । मिच्छते दूसिय सयल पय । frogs बारहम तित्थयरि । तयहुं कयवम्म वणइ घरि ।
[ ५५.५.६
सिहके द्वारा धारण की गयी बैठक ( सिंहासन ), प्रभासे आलोकित देवविमान, नागिनीके द्वारा गाये गये गोतसे मुखर नागका भवनतल, रत्नराशि और ज्वालाओंसे जलती हुई आग। इस प्रकार भाग्यशाली स्वप्नावली देखी।
बता - पीनस्तनोंवाली वह सीमन्तिनी अपने पति से कहती है । प्रतिबुद्धमति नरराज देव उसका फल उसे बताते हैं ॥५॥
जिनके चरणकमलों में देव नमन करते हैं ऐसा अरहन्त अनन्त त्रिलोकगुरु कामदेवका नाश करनेवाला पुत्र, हे परमेश्वरी, तुम्हारे उत्पन्न होगा। इसी बीच इन्द्र के आदेशसे मत्सरसे रहित अप्सराएँ वहीं बायीं । उन्होंने जयादेवीकी प्रशंसा की और गर्भाशय के दोषको दूर किया । जलषरोंकी भाँति यक्षोंने छह माह तक स्वर्णमेघों की वर्षा की। ज्येष्ठ माह्के शुक्ल पक्षको दसमोके दिन, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में चन्द्रमाके रहनेपर, रश्नों और देवों द्वारा संस्तुत चरित्र, देव हाथो के रूपमें गर्भ में अवतरित हुए। ( कुबेरने) निषिकलशों में अपना विक्रम प्रकट किया और नौ माह तक और धन की वर्षा हुई। जब बारहवें तीर्थंकरके निर्वाण कर लेनेपर तीस सागर, प्रमाण समय बीत गया तब समस्त प्रजा मिथ्यात्व से दूषित हो गयो । एक पल्य पर्यन्त धर्मके नष्ट होनेपर कृतवर्माक स्वर्णशिखरोंसे मेघों को छूने वाले घरमें तब
५. Pवाद ।
१. १. APमि । २. A कलसविमुक्त । १. A धम्मवरि ।