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-५५.७.१३]
मामलि गुपदन्त दिवस पत्ता-माहवउत्थिहि वैउिढयससिहि सिवजोयइ जिणु जायन ।।
संदणहयगयहि लंबियधहिं चउदिसु सुरयणु आइउ ।।६।।
मायासिसु मायहि ढोइयउ सके जिणधयणु पलोइयत । कर मललिवि पणविवि परमपर पुणु भत्तिइ लेविणु तित्थयरु । करि पेझिल चलिए गयणयलि पडुपडभेरिढकामुह लि। लंघेविण रविससिमंडलई णं णहयललच्छिहि कुंडलई । गउ तेत्तहिं जेत्तहिं पंडुसिल णिरु णिम्मल णावइ सिद्धइल । मंदरगिरिसिरि विरहवणु तहु देवेहिं पुजिय दिव्वतणु । पंहुरि ससहरकररासिहरि
आणेपिणु णिहियउ जणणिघरि । सिसु संसिवि जय चिरु सुकयतद गय णविवि णायदु णायभव । कालेण पवढिउ जिणु तरुणु गरुयारउ हूयड सहिधणु। सइंसट्टत्तरमियलक्खणई बहु दिई बहुयई वेजणई। वणेण वि सहइ सुखण्णणिहु हो कि महं वणिजइ अरिहु । परमेसाहु माणियबालवय वरिसह पण्णारह लक्ख गय । पुणु सयमण पणविवि पद्दविल रायत्तणि तिजगराउ थविउ ।
पत्ता-माघशुक्ला चतुर्थी के दिन शिवयोगमें जिनका जन्म हुआ। अपने लम्बे ध्वजों तथा रथों और गजोंके द्वारा चारों दिशाओंसे देव आये ॥६॥
इन्द्रने मायावी बालक माताको दे दिया और जिनवरका मुख देखा। हाथ जोड़कर, परमश्रेष्ठको प्रणाम कर फिर भक्तिसे तीर्थंकरको लेकर, वह हाथोको प्रेरित कर, पटु-पटह-भेरी और ढक्काओंसे मुखर आकाशमें चला। आकाशरूपी लक्ष्मीके कुण्डलोंके समान सूर्यचन्द्रको लांधकर वह वहां गया जहां पाण्डुक शिला थो, अत्यन्त निर्मल जैसे सिद्धशिला हो। मन्दराचल पर्वतके शिखरपर अभिषेक किया गया । देवोंने उनके दिव्य तनकी पूजा की। चन्द्रमाको किरणराशिका हरण करनेवाले माताके धवल घरमें लाकर उनको स्थापित कर दिया। "हे सुकृततप, चिरकाल तक तुम्हारी जय हो" इस प्रकार शिशुको प्रशंसा कर देवता लोग अपने-अपने स्वोंमें चले गये। समयके साथ जिन भगवान बढ़ने लगे। तरुण जिन साठ पनुष प्रमाण हो गये। एक हजार आठ लक्षण और बहुत-से व्यंजन ( सूक्ष्म चिह्न) उनके शरीरपर दिखाई दिये। वर्णमें वह स्वर्णके समान शोभित थे । अरे मैं अरहन्तका क्या वर्णन करू। परमेश्वरके द्वारा भुक्त बालकपनकी बायु पन्द्रह लाख वर्ष बीत गयी। पुनः इन्द्रने प्रणाम कर उनका अभिषेक किया और उन्हें
. A°चउद्दसहिP चयिसिइ । ५. AP बद्रिय । ७. १. P भत्ति । २. देव । ३. AP जणणिहरि; Kजणणिकरे but corrccts it to जणिधार ।
Y. A जिण तणु । ५. A अट्ठोत्तरसमिय; P सत्तरसभियं । ६. A तह णवसमसंखई; P तह तवसयसंखहं ।