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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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१५ महरिसिहि महाचरणायराई चनदहसय पुज्वंगाहराई। एक्कूणसहिसहसई सयाई दुइ सिक्खहुँ सिक्खोवहि रयाई। भयसहसई दोसय सावहीहिं पुणु सत्तसहासई केवलीहि । बारहसहसई वेवियाई इच्छियई सरूवई होति जाई । पंचेवं ताई णयसयजुयाई मणपज्जयर्ववई संथुयाई। सयसत्तपमाणुज्जोइयाई तह पंचसहासई वाइयाई । इय एक्कु लक्खु जायक्ष जईहिं लक्खाई तिण्णि वरसंजईहि । साव पर दो सुरमईहिं वनारि लक्ख जाहिं सावईहि। तहिं देवह बुजिलय केण संख संखेन तिरिय झ्यसंकख । भाभासुरु मन्वंभोयभाणु सर्ल्ड एत्तिएहिं महि विहरमाणु । सो पुथ्वसहासई पंचवीस अतिवरिसई उम्मोहेवि सीस । संमेयसेलि हल्लंततालि
सई भिक्खुसँहासे हरिणवालि । सतवप्पहावपरिवियलियासु थिउ देविसर्ग एक्कु मासु । पत्ता-आसोइ पवणि पुत्वासाढसिर्यहमिहि ॥
अवरहाइ सिद्ध थिउ मेई णियहि अटुमिहि ॥१५॥
महान् आचरणको धारण करनेवाले और पूर्वागधारी महर्षि चौदह सौ थे। शिक्षा-विधिमें रत शिक्षक उनसठ हजार दो सो, अवधिज्ञानी सात हजार दो सौ. केवलज्ञानी सात हजार, इच्छित रूप धारण करनेवाले विक्रिया ऋद्धि-धारक बारह हजार, मनःपर्ययज्ञानके धारक सात हजार पांच सौ, वादी मुनि पाच हजार सात सौ थे। इस प्रकार एक लाख भुनि थे। श्रेष्ठ संयमवाली आयिकाएं तीन लाख थीं। दो लाख श्रावक और चार लाख श्राविकाएं थीं। वहाँ देवोंकी संख्या कोन जान सका । शंका और आकांक्षासे रहित तिथंच संख्यात थे। प्रभासे भास्वर और भव्यरूपी कमलोंके लिए सूर्यके समान जिन, इन लोगोंके साथ परतीपर विहार करते हुए, तीन वर्ष कम, एक हजार पचीस वर्ष पूर्व तक मिथ्याष्टि शिष्योंको सम्बोधित कर, आन्दोलित ताल वृक्षोंवाले, और मृगोंका पालन करनेवाले वे सम्मेदशिखर पर्वतपर पहुंचे। एक हजार मुनिके साथ, अपने तपके प्रभावसे आशाओंको गलानेवाले वह, एक माहके लिए प्रतिमायोगमें स्थित हो गये।
___ पत्ता-आश्विन शुक्ला अष्टमीके दिन पूर्वाषाढ़ नक्षत्रमें अपराह्म के समय घे आठवी भूमि (सिद्धशिला) में जाकर स्थित हो गये ||१५||
१५.१. AP पुश्वगायरा । २. A सिक्खावा पियाई: P सिक्खापहि रियाई। ३.Aबारहसयाई। ४. A
पंखेव ताईवसंजयाई: PAसेव ताई वयसंजयाई। ५. Arcadoasband basan ६. A उम्मोहिम वि सीस । ७.A भिषखसहासें । ८. A सियछट्रिमिहि । ९. मेणिया।