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महापुराण
[ ५२. २२.७
कपणामुहालोयसुहदिपणराएण भग्गो सि किं मित्त वरश्त्तवारण । रत्तो सि कि मूढ गयणयरवालाहि भोसरसु मा पडसु खग्गम्गिजालाहि । णषकंदकालिदिभसलडलकालेण कोवामणच्छेण भंगुरियभालेण । जम्मंतराबद्धबइराणयघेण पहिउत्तु पडिकण्हु चलगलचिंधेण । परदविणपरधरणिपरधरिणिकंखाइ डिओ सि पाविट्ठ किं चोरसिक्खाइ । एवं पजपंत कंपवियमहिवह। करिदंतपरिहटमुयदंडसुपचट्ठ। दप्पिट्ट णिक राह दवोह भडजेह ते वे वि अभिट्ठ वईकुंठहयकंठ । ते बे वि मणिमडकुंडलसुसोहिल्ल तेचे वि कोदंडमंडलविलासिल्ल। ते व वि णं सोइ लंबावयलंगूल ते बविणे लग्ग संत सद्दूल । ते थे वि विसविसम ते बे वि तडितरल ते बे वि मरुचवल ते बे वि कुलधवल 1 धत्ता-बेणि वि दाणणिहि सिरितोसविहि मयपरवस उज्झियभय ।।
बेणि वि दीहकर गंभीरसर रणि लम्ग'ण दिग्गय ॥२२॥
दुवई-बेणि वि अच्छरच्छिविच्छोहेणियच्छियबद्धमच्छरा ।।
बेणि विर्ण जलंतपलयाणल बेण्णि विणं सणिकछरा || पुत्र ( अश्वग्रीव) ने कहा कि हे मित्र, जिसमें कन्याके मुखालोकसे शुभ राग दिया गया है, ऐसी अभिनव धरकी बातसे क्या तुम भग्न हो गये हो ? हे मूर्ख, विद्याधर बालामें तुम क्यों अनुरक्त हुए, तुम हट जाओ, तुम खड्गरूपी आगकी ज्वालामें मत पड़ो। ( इसपर ) श्रावण मेघ, यमुना और भ्रमरकुलके समान कृष्ण, तथा क्रोधसे अक्षण आँखोंवाले, टेढ़े भालवाले, तथा जन्मान्तरके बंधे हुए बैरके अनुबन्धसे युक्त और चंचल गरुडध्वजवाले नारायण त्रिपृष्ठने प्रतिकृष्ण (अश्वग्रोव)से कहा-"दूसरेके धन-धरती और स्त्रीको आकांक्षा है जिसमें, ऐसी चोरशिक्षा द्वारा हे पापिष्ठ, तू क्यों प्रतारित है ?" यह कहते हुए चोर महीपष्ठको. ऑपाते हए हाथोके दांतोंसे संघर्षित भुजदण्डोंसे प्रवल दर्पसे भरे हुए अत्यन्त कुद्ध, ओठ चबाते हुए योद्धाओंमें बड़े वे दोनों प्रति. नारायण अश्वनोबसे भिड़ गये। वे दोनों ही मणिमय मुकुट और कुण्डलोंसे शोभित थे, वे दोनों हो धनुषमण्डलसे विलास करनेवाले थे। ये दोनों ही मानो लम्बो पूंछवाले सिंह थे। वे दोनों ही इस प्रकार युद्ध में लग गये मानो गरजते हुए सिंह हों, वे दोनों विषसे विषम और बिजलीकी तरह तरल थे, वे दोनों ही कुलधवल थे।
पत्ता-वे दोनों ही दानको निधि, श्री और सन्तोषके विधाता, मदके वशीभूत और भयसे रहित थे। वे दोनों ही लम्बे हाथवाले गम्भीरस्वर रणमें इस प्रकार भिड़ गये मानो दिग्गज हो ॥२२॥
वे दोनों ही देवांगनाओंके नेत्रोंको चपलताको देखनेके लिए ईर्ष्या धारण करनेवाले थे । वे २, A कहो महा । ३. P गयणयलपालाहि । ४. AP बंधेण । ५. A पडिलविउ । ६. कंपश्य महिपष्ट। ५. A पविष्ट। ८. वस्त । .A राजंतसद्दल । १०. A दोहरकर ।
११. A सग्ग । २३. १. P"विच्छोहा णियच्छिय ।