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-५२. १५.२]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
कुंजरघघल्लियमुहब डाई वंसग्गविलेत्रियधयवडाई। कुंकुमचंदणचचियमुयाई परिहियमणिकंचणकचुयाई । करलुहियगहियबहुपहरणाई णियसामिज्ञि णिच्छयमणाई । काणीणवीणढोइयधणाई
भडकलयलबहिरियतिहुवणाई । विलुलंतचिमणेत्तंचलाई अहिणंदियकलसजलुप्पलाई। घलपरणचारचालियधराई डोल्लावियगिरिविवरंतराई। ढलह लियघुलियवरविसहराई भयतसिररसियपणवणयराई। झलझ लियवलियंसायरअलाई जलजलियकालकोवाणलाई। पयहयरयछाइयणहंसराई
अणलस्सियहिमयरणियराई। करिवाहणाई सपैसाहणाई हरिहरिगीवाहिवसाहणाई। आयई अण्णपणहु संमुहाई असिदाढालई अवमुहाई। घत्ता-संचोइयगयई वाहियाह्यई रणरसरिसषिसट्टइं ।।
दूराझियमयई उभियधयई बे वि बलई अभिट्टई ॥१४॥
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दुवई-वेणि वि दुद्धराइं दुणिरिक्खई कयणियपहुपणामई ।।
कपणाहरणकरणरणलग्गई जयसिरिंगहणकामई ।। पैर देकर कुम्भमण्डलपर पैर रखना। जिसमें हस्तिघटापर मुखपट डाल दिये गये हैं मानो बाँसोंके अग्रभागपर ध्वजपट अवलम्बित हैं, भुजाएं केशर और चन्दनसे चर्चित हैं, जिन्होंने मणियों और सोनेके कंचुक पहन रखे हैं, जिन्होंने साफ किये हुए बहुत-से हथियार हाथमें ले रखे हैं, अपने स्वामीके कार्य में जो निश्चितमन हैं, जिनमें कानीनों और दीनोंको धन दिया गया है, जिन्होंने योद्धाओं को कलकल ध्वनिसे त्रिभुवनको बहरा कर दिया है, जिनमें चित और नेत्रांचल पदित है, और कलश जल तथा कमल अभिनन्दित है, चंचल धरणोंके संचरणसे धरती चलायमान कर दी गयी है, पहाड़ोंके विवरान्तोंको हिला दिया गया है, जिनमें बड़े-बड़े सांप गिरकर चक्राकार घूम रहे हैं, भयसे त्रस्त धनवनचर चिल्ला रहे हैं, समुद्रका जल झलझलाकर मुड़ रहा है, कालरूपी कोपाग्नि प्रज्वलित हो उठी है, पैरोंसे आहत धूलसे आकाशका भाग आच्छादित है और जिसमें सूर्य और चन्द्रमा दिखाई नहीं दे रहे हैं, जिनमें प्रसाधनोंसे सहित हाथियोंके वाहन हैं, ऐसे नारायण और अश्वग्रीव राजाके सैन्य एक दूसरेके आमने-सामने आ गये जो मानो तलवाररूपो दाढ़ोंसे यममुखों के समान थे।
पत्ता-गज चला दिये गये, अश्व हांक दिये गये, उत्साह और हर्षसे विशिष्ट, भयको दूरसे ही मुक ध्वज ऊपर उठाये हुए दोनों सैन्य आपसमें भिड़ गये ।।१४।।
दोनों ही दुर्धर दुर्दर्शनीय और अपने स्वामीको प्रणाम करनेवाले थे, कन्याके अपहरण १४. १. A अणिज्य । २. AP हलहलिय । ३. AP भयरसियतसिय। ४. AP लिय'। ५. ।
सुपसाहणाई। ६, आयहिं । ७. AP दाका इव । ८, AP उममुहाई। १५. १. AP'रणि लगई।