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महापुराण
[४०.१२.३६
सुसासया
णिरंसया। सुणीरए
तुहारए। अदुण्णए
बुहा मए। कउज्जमा
महाखमा। चरति जे
लहंति ते। महंगई
परंगई। सुहं गया
हयावया। णिरामया
सरामया। णिरंजणा
णमो जिणा। पत्ता-कयमाणवखंभहिं सारसरंभहिं वेल्लीदुर्भमणिवेइयहिं ॥
वरधूलीसालहिं णचणसालहिं गोउरथूहहिं चेइयहिं ॥१२।।
१३
जहिं समवसरणु सुरणिम्मविउं गुरु कंठीरवविट्ठरु ठविउं । जहिं सुविहावलउं विलंबिकर अलिचुंबियफुल्लु असोयतरु । जहि णहणिवडिउँ पसूयपयाँ आहंडलडिंडिमु मुयह सरु। जहिं छत्तई तिण्णि समुब्भियई विविहई चिंधई चमरई सियई। जक्खिदमउंडसिहरुद्धरित जहिं धम्मचक्कु आराफुरिउ । जहिं वंति गंति णचंति सुर विभयरसपरवस थक्क गरे ।
तहिं संणिसण्णु सो परममुणि मुणिवयणविणिग्गंड दिव्वझुणि । को शाश्वत और अंशरहित अर्थात् सम्पूर्ण लक्ष्मी नहीं प्राप्त होती। जो लोग तुम्हारे अत्यन्त पवित्र, दुर्नयोंसे रहित मार्गमें चलते हैं, उद्यम करनेवाले अत्यन्त क्षमाशील वे अपनी आपत्तियोंका नाश कर परमगति और सुखको प्राप्त होते हैं। जो निरामय हैं, कामदेवके रोगसे रहित ऐसे निरंजन जिनको प्रणाम करता हूँ।"
पत्ता-बनाये गये मानस्तम्भों, सारसयुक्त जलों, लताद्रुम और मणिमय वेदिकाओं, श्रेष्ठ धूलिप्राकारों, नृत्यशालाओं, गोपुर-समूहों और चैत्योंसे सहित-॥१२॥
जहां देवनिर्मित समवशरण था। उसमें विशाल सिंहासन रखा हुआ था। जहां कान्तिसे सहित, प्रसरित किरणोंवाला, भ्रमरोंसे चुम्बित पुष्पवाला अशोक वृक्ष था, जहां आकाशसे पुष्प समूह गिर रहा था । इन्द्रका नगाड़ा डिम-डिम वाद्य बजा रहा था। जहां तीन छत्र उत्पन्न हुए थे, विविध ध्वजचिह्न और चमर भी। जहां यक्षेन्द्रके मुकुटशिखरपर उद्धृत और आशाओंसे विस्फुरित धर्मचक्र था। जहां देवता गाते-बजाते नाच रहे थे। विस्मय रससे भरे हुए लोक स्थिर रह गये। ऐसे उस समवसरणमें वह परममुनि विराजमान थे। मुनिवरके मुखसे दिव्यध्वनि
११. A सुसंसया । १२. APT महुण्णई । १३. A माणवहरखंभहि; Komits कय । १४. P वल्ली। १३. १. A विट्ठर। २. AP फुल्ल । ३. णिवडिय । ४. AP°पवरु। ५. A°म उल। ६. AP सुरा ।
७. A विभिय । ८. AP णरा । ९. P "विणिग्गय ।