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महापुराण
[४७.१४.८
उम्मग्गि बट्टति महु मजु घोति । अलियं पर्यपंति कामेण पंति । परबटु णिहाळति पारद्धि खेलंत । लोहेणे भन्नति परहणुण वयति । रोसेस पति खग्गाई कढुति । जे मासु भवनति ते पई ण पेक्खंति । भूदा ण बंइंति णिच पि णिति । संचरइ जणु छम्मु पई मुइवि कहिं धम्मु ।
बडजणणजलसेउ पई मुइवि को देख। घसा-मिच्छापरिणामग्गई लम्ग घणतमदुग्धहे।
णिवडतं ण उवेक्खियं जगडिभं पहं रक्खिये ॥१४॥
१५
समवसरण लिए संदिर मान अहासी हुय गणहर तावहिं । पण्णारहसय वज्जियसंगह परमरिसिहि जाणियपुठवंगई । एकलक्खु सहुं पंचावण्णहिं सहसहिं पंचसईसंपण्णहि । सिक्खंयाहि णिम्माहियरईसह अट्टसाहस चउसय ओहीसह । सत्तसहस केवलणाणालई तेरहसहसई विकिरियालहं। भयसहास वयसय मणपजय णाणघारि दोसासय दुजय । वईतंडियपत्तरदाइहिं
रिदुसहसई रिदुसयई विवाइहिं । उन्मार्गपर चलते हैं, मधु और मद्य खाते हैं, झूठ बोलते हैं, कामसे कांपते हैं, परवधूको देखते हैं, शिकार खेलते हैं, लोभसे भग्न होते हैं, परधनको नहीं छोड़ते, क्रोधसे भड़कते हैं, तलवारे निकाल लेते हैं और जो मांस खाते हैं वे तुम्हें नहीं देख सकते। मूर्ख तुम्हारी वन्दना नहीं करते, नित्य तुम्हारी निन्दा करते हैं, जन क्षमा धारण करता है, आपको छोड़कर कहा धर्म है, संसाररूपी अलके लिए सेतु हो, तुम्हें छोड़कर कौन देव हो ?
पत्ता-मिथ्या परिणामका जिसमें आग्रह है ऐसे घनतमरूपी दुष्पथमें लगे हुए, गिरते हुए विश्वरूपो बालकको तुमने उपेक्षा नहीं को, उसको रक्षा को ॥१४॥
___ जैसे ही जिनवर समवसरण में विराजमान हुए, तो उनके अठासी गणधर हुए। परिग्रहसे रहित पूर्वांगोंको बाननेवाले पन्द्रह सो परममुनि, एक लाख पचपन हजार पाँच सी शिक्षक थे। कामदेवको नष्ट करनेवाले आठ हजार चार सौ अवधिज्ञानी थे। केवलज्ञानके धारो सात हजार थे, विक्रियाऋद्धिके धारक तेरह हार थे, सात हजार पांच सौ मनःपर्ययज्ञानके धारक थे।
३. P मोलति । ४. P reads a as b and basa। . A जणछम्मु P जहिं छम्मु । ६. P
दुप्पाहे । ७. A णिवतउ । १५.१. P adds after this : एए मुणि संजाया तावहि, इंदविसहरमणहर । २. P अट्ठासीस जाया
मणघर । ३. AP सिक्खुबाई । ४. AP बयतंडिय ।