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महापुराण
ता--जिह भरंइस समीरिओ रिसद्देणंगयवयरिओ ॥ तिह महं तुह कहिओ इमो पुष्कदंत जिणपुंगमो ||१६||
[ ४७. १६९
इय महापुराणे विखट्टिमापुरिसगुणालंकारे महाकपुष्पदंतविरइए महामभ्यभरहाणुमणिए महाकध्ये पुतमिवाणगमणो नाम सचाळीसमो परिछेओ समतो ॥ ४७॥ ॥ जिर्ण पुष्यं तचरिये समतं ॥
पत्ता - जिस प्रकार ऋषभनाथने कामके यात्रु भरत से कहा था, उसी प्रकार जिनवर श्रेष्ठ पुष्पदन्तका यह चरित मैंने तुमसे कहा ||१६ ॥
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुफाकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महाभमन्य मरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका पुष्पदन्त निर्वाणगमन ताकीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ४७ ॥
नामका
६. P भर हो । ७. A पुप्फयत GP सत्तालोगयो । ९. AP omic the live t