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महाकवि पुष्पदन्त विरचित सुसच्चतभंगवियारणासं
अणंगसिंगारवियारणासं। सदिलियाभक्खरभावहारं भवोहसंभूइभयावहारं । पुरंदरालोयणजोग्गगतं
समुजियाहम्मदुपंकगतं । णिवारियप्पवहसेलपायं फणिचूडामणिघट्टपाये। खगिददेविंदमुर्णिदधेयं
णमामि चंदप्पाहणामधेयं । गानि बरसेन पुणो पुराण गणेसगीयं पवरं पुराणं। घत्ता-अमलइ अत्थरसालइ वयणणधुप्पलमालइ ।।
अदुमु जिणवरु पुज्जमि पर पुष्णु आवजमि ॥१५॥
मणुउत्तरोइक्षि
भूभाइ सुसहिल्लि । दीवे पसिद्धम्मि
पुक्खरवरद्धम्मि। जलमरियकंदरा पुठिवल्लमंदरहु । सुरलोयसोहम्मि पच्छिमविदेहम्मि। धणकणसमिद्धम्मि देसे सुगंधम्मि। छक्खंडधरणिवाड सिरिपुरवरे णिवइ । उद्धृयरिउरेणु
णामेण सिरिसेणु । सिरिकंत साहु घरिणि करिवरहु णं करिणि । सुयरहिउ गरणाहु चिंतवइ थिरबाहु ।
किं करमि कहिं चरमि को देस संभरमि । विशेष पीड़ा देनेवाले हैं, जिनका मुख सुसस्य और तत्त्वसे अपलक्षित है, जो कामश्रृंगारके विचारों का नाश करनेवाले हैं, जो अपनी दीप्तिसे सूर्यप्रभाका अपहरण करनेवाले हैं, जिनका शरीर इन्द्रके लिए दर्शनीय है, जिन्होंने अधर्मके दुष्पकमा गतं छोड़ दिया है, जिन्होंने आत्मज्ञानके लिए पर्वतसे नीचे गिरनेका विरोध किया है, जिनके चरण नागराजके चूडामणिसे घिसे जाते हैं, जो खगेन्द्रों, देवेन्द्रों और मानवेन्द्रोंके द्वारा ध्येय हैं-मैं ऐसे चन्द्रप्रभ स्वामीको नमस्कार करता हूँ और फिर उन्हींका पुराण कहता हूँ जो कि पहले गणधरोंके द्वारा कहा गया था।
धत्ता-स्वच्छ अर्थोसे रसाल वचनरूपी नवकमलोंकी मालासे आठवें जिनवरकी मैं पूजा करता हूँ और प्रचुर पुण्यका उपार्जन करता हूँ ||१||
१.
मानुषोत्तर पर्वतसे सुशोभित सुखद भूभागवाले प्रसिद्ध पुष्कर द्वीपमें, जिसकी गुफाएं अलसे पूरित हैं ऐसे पूर्व मन्दराचलके पश्चिम विदेहमें धनकणसे समृद्ध सुगन्धि देशके ओपुर नगरमें छह खण्ड धरतोका अधिपति, शत्रुओंको धूल उड़ानेवाला राजा भीषण था। श्रीकान्ता उसकी गृहिणी थो, मानो करिवरको हथिनी हो । पुत्रसे होन स्थिरबाहु राजा विचार
७. A T भाविहारं । ८. A°संभूहयभावहारं । ९. A पुरंदरोलोयणजोगगत्तं; P पुरंदगलोयगजोयगत । १०. A"
घिपाय । ११. AP पवरं। २.१.A P मणसुप्तरोइल्लि ।
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