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महाकवि पुष्पदन्स मिश्चित पत्ता-तियसेहिं असंस्खहि संखतिरिक्वहि सह दुचरियई खंडिवि ।।
ववरिसविहीणउ जयविजयाणउ पुबलक्ख महि हिंडिवि ॥१०॥
महियमहिउ महमहियाणगड सहुँ सोसेहिं समाहिवसंगउ । संमेयह जाइवि गिरिधीरत तीस दियह थिउ मुक्कसरीरउ । फग्गुणमासि कालपक्खंतरि साणुराहि सुहसत्तमिवासरि। सूरुग्गमि बुदेवहं देवे णिकिरियत्तु पत्तु विणु खेवें। णिदिउ अट्ठमसुह पढुकउ गउ सुपासु पासेहिं विमक्कर। चंदणकरमेण पव्वालिय पर्नुलोमीसे मालहि मालिय। दिण्णी' मउडाणलजालोलिय चिशिकुमारे तणु पज्जालिय। बंदिघि भर्प पावणिपणास णायणाहु गउ णायावासउ । णायारूढ कहा णयगई पवणवरुणवइसवणपयंगह। घत्ता-जहिं भरइजिणेसहु णाणु सुपासहु पसरह देवहु केवलिहिं ।।
तहिं बाइण वायउ ण तम् ण तेयर पुष्पदंतकिरणावलिहि ॥११॥ इय महापुराणे सिसहिमहापुरिसगुणाकंकार महाकहपुष्फर्यतविरइए महामनभरहाणुमण्णिए ___ महाकम्मे "भुपासणियाणगमणं णाम आउयालीसमो परिच्छेनो मतो ॥१५॥
म सुपासचरियं समत्तं ॥
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पत्ता-असंख्यात देवों और संख्यात तियंचोंके साथ दुश्चरितोंका खण्डन कर, नौ वर्ष कम, जय-विजय करनेवाले एक लाख पूर्व वर्ष धरतीपर विहार कर ||१०||
पूज्योंके पूज्य, तेजसे कामका मथन करनेवाले, समाधि लीन, शिष्यों के साथ, पहाड़की तरह धीर सम्मेद शिखरपर जाकर वह तोस दिन तक मुक्त शरीर रहकर फागुन माहके कृष्णपक्षमें शुभ सप्तमोके दिन अनुराधा नक्षत्रमें सूर्योदय वेलामें अनेक देवोंके देवने बिना किसी विलम्बके निष्क्रियत्व ( मुक्ति) को प्राप्त कर लिया। निष्ठावान वह आठवी भूमिमें पहुँच गये, सुपाश्व पाशके बन्धनों से मुक्त हो गये। उनके शरीरको चन्दनसे प्रलिप्त किया गया, इन्द्र के द्वारा मालाओंसे लपेटा गया, अग्निकुमार देवने मुकुटानल ज्वाला दो और शरीर प्रज्वलित कर दिया गया । उनकी, पापका नाश करनेवाली भस्मको वन्दनाकर इन्द्र अपने निवासके लिए चला गया। अपने ऐरावत नागपर आरूढ़ वह नत शरीर पवन, वरुण, वैश्रवण और सूर्य आदि देवोंसे कहता है
पत्ता-कि जहाँ सूर्य-चन्द्र के समान किरणावलिवाले भरतजिनेश और केवली देव सुपाश्वका ज्ञान प्रसरित होता है वहाँ न वादी है और न प्रतिवादी, न तम है और न तेज ॥११|| इस प्रकार ग्रेस महापुरुषों के गुगालंकारोंसे युक्त महापुराणमे महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित महामम्प मरत द्वारा अनुमा महाकाव्यका सुपावं निर्वाणगमन
नामका चबाकोसका परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ru १०. P मंडिवि । ११. 1. A P दिवह । २. P कालि पावंतरि । ३. A अमिवसुह । ४.A P पोलोमोसें । ५ A मालइ.
मालिय । ६. P मणिमसहाणलेण जालोलिए । ७. P चचिकुमारिहिं । ८, A भव । ९.AP पुषफ. यंत । १०. A सुपासजिणिवाणं । ११. A P amit this line,