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महापुराण
[४७.२.९
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पुरि पहसिरि व भमालाकंतिहि राउ महापठमउ परमाणणु पत्ता-करतरवारिवियारिया
णिवडिय सूर दणंगया
पंडु पुंडरिकिणि घरपंतिहि ।
पउमषिलोयणु परमामाणणु ।। जेण रिऊ संघारिया। णासिवि भील वणं गया ।।२।।
परियाणिय णिव अत्थाणथा
एकहिं दिगि तमु सारस्य । आवेप्पिणु अक्खिउ वणवाले निव वणु भूसिई तिवणवालें । तं णिसुणिवि सो रइयरहंतह वंदणइत्तिइ गठ अरहंतहु । वंदिउ वंदणिज्जु जो बंदहुं इंदचंदणाईदरिदुहुँ। जिह जिह तेणे देन णिज्झाइस तिह तिह सो णिवेउ पराइल | भिश्चलोछ दूसणु परलोयहु भोउ गणिज सरिसाव फणिभोयह । णारि मारि भीसण ते दिट्ठी हियवा विसयविरक्ति पट्टी। पुत्तहु बालकमलदलणेचर
देवि धेरत्ति मत्ति धणयत्तहु । मुशउँ घरु बहुदुक्खहं भड लक्ष्य पर संसारतरंड। धत्ता-सुपरंतो जिणपुंगमं इसि पाणिचियसंजमं ।।
पालइ मुकणिर्यगत सुयएयारहअंगउ ||३||
उसमें गृहपंक्तियोंसे सफेद पुण्डरीकिणी पुरी नक्षत्रमाला की कान्तिसे आकाशलक्ष्मीकी तरह जान पड़ती है, उसमें कमलके समान आँख, हाथ और मुखवाला महापद्म नामका राजा था।
पत्ता-जिसके द्वारा हाथकी तलवारसे विदारित और संहारित शूरवीर शत्रु घायल होकर गिर पड़े और भागकर वनमें चले गये ।।२।।
अर्थ-अनर्थको जाननेवाले उस राजाके दरबारमें आकर एक दिन वनपालने कहा, "हे राजन्, वन तीन कालकी शोभासे विभूषित हो गया है ।" यह सुनकर वह कामदेवका अन्त करनेवाले अरहन्तको वन्दनाभक्ति करने के लिए गया। इन्द्र, चन्द्र, नागेन्द्र और नरेन्द्रों के समूहके द्वारा वन्दनीय उनकी उसने वन्दना की। जैसे-जैसे उस राजाने देवका ध्यान किया, वैसे-वैसे वह निर्वेदको प्राप्त हो गया। उसने सोचा कि मृत्यलोग परलोकके लिए दूषण हैं, उसने भोगोंको नागके फनकी तरह समझा, उसने नारीको भीषण मारोके रूप में देखा, उसके हृदय में विषयों के प्रति विरक्ति प्रवेश कर गयो। बालकमलके समान माखोंवाले अपने पुत्र धनवतको शीघ्र धरती देकर अनेक दुःखोंके पात्र घरका परित्याग कर दिया, और संसारसे तारनेवाले व्रतको स्वीकार कर लिया।
घसा-जिनश्रेष्ठका स्मरण करते हुए वह मुनि प्राण और इन्द्रियोंके संयम और कामदेवसे रहित एकादश श्रुतांगोंका पालन करते हैं ||३||
१०. पुंडरिंगिणि। ३. १. नृप । २. AP तं णिसुणेवि रस्म । ३. A बंदणभत्तिह। ४. P देउ तेण । ५. P धरित्ति
सत्ति । ६. AP बज । ७, A सुमरतो जिणगर्व P सुमरंकहो मिणपुंगमं । ८. AP पाणिदिय ।