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सामित्तपरूवणा
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उक्क० । दोवचिजोगी० तसपजत्तभंगो ।
३३. ओरालि० छण्णं क० ओघं । मोहाउगस्स उक्क० पदे० क० १ अण्ण० तिरिक्खस्स वा मणुसस्स वा सण्णि० मिच्छा० वा सम्मा० वा सत्तविधबं० उक्क० । वरि आउ० अट्ठविधनं० । ओरालि० मि० सत्तष्णं क० उक० पदे० क० १ अण्ण० तिरिक्ख • मणुस ० सणि० मिच्छा० वा सम्मा० वा सत्तविधनं० उक० से काले सरीरपतिं गाहिदिति । आउ० उक्क० क० १ दुर्गादि० तिरिक्ख० मणुस० मिच्छा० अविध उक्क० ।
३४. वेउ० सत्तण्णं क० उक्क० पदे० क० १ अण्ण० देव० णेरइ० सम्मा० वा मिच्छा० वा सत्तविधवं ० उक० । एवं आउ० । णवरि अडविध० उक्क० । वेउव्वि०मि० सत्तणं क० उक्क० पदे० क० १ अण्ण० देव० णेरइ० सम्मा० वा मिच्छा० वा से काले सरीरपतिं जाहिदि त्ति सत्तविध० उक्क० ।
३५. आहारका० सत्तण्णं क० उ० पदे० क० १ अण्ण० सत्तविध० उक० । एवं
है, वह मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। दो वचनयोगी जीवोंका भंग त्रसपर्याप्तकोंके समान है ।
३३. औदारिककाययोगी जीवोंमें छह कर्मोंका भंग ओघके समान है । मोहनीय और आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तिर्यन और मनुष्य संज्ञी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इतनी विशेषता है कि आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । औदारिकमिश्र काययोगी जीवोंमें सात प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तिर्यन और मनुष्य संज्ञी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है, उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है और अनन्तर समयमें शरीरपर्याप्तिको ग्रहण करनेवाला है, वह सात प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो दो गतिका तिर्यन और मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीव आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है ।
३४. वैक्रियिककाययोगवाले जीवोंमें सात प्रकारके कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर देव और नारकी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मीका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात प्रकार के कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर देव और नारकी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव तदनन्तर समय में शरीरपर्याप्तिको ग्रहण करनेवाला है, सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है ।
३५. आहारककाययोगी जीवोंमें सात प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन
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