Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 331
________________ ३०८ महाबंधे पदेसंबंधाहियारे पंचंत० णि० बं० णि० जह० । दोवेद० ' -सत्तणोक० आदाब- दोगोद० सिया० बंधगो सिया० अबंधगो । यदि बंधगो णियमा जहण्णा । दोगदि-पंचजादि छस्संठा०-ओरालि०अंगो० छस्संघ० - दोआणु ०[० पर० - उस्सा० उज्जो ० दोविहा० - तसादिदसयुग० सिया० तं तु ० जहण्णा वा अण्णा वा । जहण्णादो अजहण्णा संखैजदिभागन्भहियं बंधदि । ओरालि०तेजा० क० वण्ण०४- अगु० -उप-णिमि० णि० बं० तं तु ० संखेजदिभागन्भहियं बंधदि । एवं चदुणा०-वदंस दोवेद० - मिच्छ०- सोलसक० णवणोक ० - पंचंत ० ३ । णवरि इत्थि०पुरिस० एइंदि० - विगलिंदि० आदाव थावरादितिष्णि० वज । णवरि इत्थि० - पुरिस० जह० पदे०बंधंतो मणुसगदिदुगं उजो० - दोवेद० - चदुणो० - दोगोद० सिया० जहण्णा । 3 ४८९. णिरयाउ ० जह० पदे०चं० पंचणा०-णवदंस० - असादा०-मिच्छ०-सोलसक०वुंस० - अरदि - सोग-भय- दु० - पंचिंदि० - वेउब्वि० - तेजा० - क ०- • हुंड० - वेउव्वि ० अंगो० - ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो वेदनीय, सात नोकषाय, आतप और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, उद्योत, दो विहायोगति और सादि दस युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो वह अपने जघन्यकी अपेक्षा संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो अपने जघन्यकी अपेक्षा संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । इसी प्रकार अर्थात् आभिनिबोधिकज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये उक्त सन्निकर्षके समान चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिध्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय और पाँच अन्तरायका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है स्त्रीवेद और पुरुषवेदका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके एकेन्द्रियजाति, विकलेन्द्रियजाति, आतप और स्थावर . आदि तीनको छोड़कर सन्निकर्ष कहना चाहिए। तथा इतनी और विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव मनुष्यगतिद्विक, उद्योत, दो वेदनीय, चार नोकपाय और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । ४८९. नरकायुका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिध्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पञ्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, १. वा०पतौ 'सोलस०भ [ यदुगु ० ] 'दोवेद' श्र०प्रतौ 'सोलसक० भयदु० 'दोवेद० इति पाठः । २, प्रतौ 'चदुणो०णवदंस०' इति पाठः । ३. ता०श्रा० प्रत्योः 'मिच्छ • पंचत०' इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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