Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 347
________________ ३२४ महाबंधे पदेसबंधाहियारे दोविहा०-थिरादिछयुग० सिया० तं•तु० संखेजदिभागन्भहियं बं० । दोगदि-वेउवि०दोआणु० सिया० संखेजदिभागब्भहियं बं० । पंचिंदि०-तेजा.-क०-वण्ण०४-अगु०४तस०४-णिमि० णि बं० तंतु० संखेजदिभागब्भहियं बं० । णवरि तेजा०-क० तंतु० गस्थि । वेउवि अंगो० सिया० संखेंजदिभागभहियं० संखेंजगुणब्भहियं । पुरिस० इत्थिभंगो। ५१८. णqस० जह० पदे०५० पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०-भय-दु०पंचंत०' णि० बं० णि० [जह०]। दोवेद-चदुणोक०-तिण्णिआउ०-णिरय-णिरयाणु०. आदाव०-दोगोद० सिया० जह० ।तिरिक्ख०-पंचजादि-ओरालि०-छस्संठा०-ओरा० अंगो०छस्संघ०-तिरिक्खाणु०-पर०-उस्सा०-उज्जो०-दोविहा०-तसादिदसयुग० सिया० सं०तु० और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो गति, वैक्रियिकशरीर और दो आनुप-का कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पश्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, सचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। इतनी विशेषता है कि तैजसशरीर और कार्मणशरीरका तंतु. बन्ध नहीं होता। वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्गका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदे करता है या संख्यातगुणा अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पुरुषवेदका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका सन्निकर्ष भङ्ग स्त्रीवेदका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्षके समान है। ____५१८. नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, चार नोकषाय, तीन आयु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, आतप और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। तिर्यञ्चगति, पाँच जाति, औदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीर आङ्कोपाङ्ग, छह संहनन, तियश्चगत्यानुपूर्वी, परघात, उच्छास, उद्योत, दो विहायोगति और त्रस आदि दस युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेश 1. ता०प्रतौ 'इत्यिक पंचंत०' श्रा०प्रतौ 'इथि० भंगो ।..."पंचंतः' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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