Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 360
________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं ३३७ संखेंजदिभागब्भ० संखेंजगुणब्भहियं वा । लोभसंज० णियमा तंन्तु० संखेजदिभागब्भ० संखेंजगुणब्भहियं वा चदुभागब्भहियं वा । एवं चदुणा०-चदुदंस०-सादा०-जस०उच्चा०-पंचंत। ५४१. कोधसंज. जह० पदे०व० पंचणा०-चदुदंस०-सादा०-तिण्णिसंज-जस०उच्चा०-पंचंत० णि० बं० णि० जह० । एवं तिण्णिसंज। ५४२. कोध-माण-माया-लोभं ओघं । मदि-सुद० सव्वाणं ओघं । णवरि वेउव्वियछक्कं जोणिणिभंगो। ५४३. विभंगे आभिणि. जह० पदे०६० चदुणा०-णवदंसणा०-मिच्छ०-सोलसक०भय-दु०-पंचंत० णि० बं० णि. जह० । दोवेद०-सत्तणोक०-चदुआउ०-वेउव्वियछ०आदाव-दोगोद०' सिया० जह० । दोगदि-पंचजादि-ओरालि०-छस्संठा-ओरालि.. है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। मायासंज्वलनका कदाचित बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभाग अधिक या संख्यातगुणा अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। लोभसंज्वलनका नियमसे प्रदेशबन्ध करता है। किन्तु वह इसका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभाग अधिक या संख्यातगुणा अधिक या चार भाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । इसी प्रकार अर्थात् आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये उक्त सन्निकर्षके समान चार ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय का जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिए। ५४१. क्रोधसंज्वलनका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, तीन संज्वलन, यश-कीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार अर्थात् क्रोधसंज्वलनका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये उक्त सन्निकर्षके समान तीन संज्वलनका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष कहना चाहिए । ५४२. क्रोधकषायवाले, मानकषायवाले, मायाकषायवाले और लोभकषायवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें सब प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें वैक्रियिकषटकका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च योनिनी जीवोंके समान है। ५४३. विभङ्गज्ञानी जीवोंमें आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, सात नोकषाय, चार आयु, वैक्रियिकषट्क, आतप और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो गति, पाँच जाति, औदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीर १. प्रा०प्रतौ 'वेउव्वियछ• आहार० दोगोद०' इति पाठः । २, प्रा०प्रतौ 'सिया० दोगदि' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education Internatio४२

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