Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 372
________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सणियास " संखेजदिभाग०भ० । एवं दव्वं । दोआउ० णिरयभंगो । देवाउ० पंचिंदियतिरिक्खजोणिणिभंगो । ३४९ ५६३. सम्मामि० आभिणि० जह० पदे०चं० चदुणा० छदंसणा० - बारसक०पुरिस०-भय-दुगु० -उच्चागो० - पंचंत० णि० चं० णि० जह० | दोवेद० चदुणोक०देवदि०४ सिया० जह० । मणुस० मणुसाणु० र सिया० जह० । पंचिंदियादि याव णिमिणति णि० तंतु० संखेजदिभागन्भहियं ० । २ ५६४. देवगदि० जह० पदे०चं० पंचणा० छदसणा० - बारसक० - पुरिस०-भयदुर्गा ० उच्चा० - पंचंत० णि० चं० णि० जह० । दोवेद० चदुणोक० सिया० जह० । पंचिदियजादि याव णिमिण त्तिणि० बं० णि० संखैजभागन्भहियं । वेउव्वि०उव्व० अंगो० -देवाणु० णि० बं० णि० जह० । सव्वाओ णामपगदीओ मणुसगदि O प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो उनका नियमसे संख्यात भाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। तथा जो कदाचित बँधती हैं और कदाचित् नहीं बँधतीं, उनका भी जघन्य प्रदेशबन्ध करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो उनका नियमसे संख्यात भाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। इस प्रकार आगे भी ले जाना चाहिए। दो आयुओं का जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका सन्निकर्ष नारकियोंके समान है । देवायुका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका सन्निकर्ष पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी जीवोंके समान है । ५६३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो वेदनीय, चार नोकषाय और देवगतिचतुष्कका कदाचित् बन्ध करना है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । पचेन्द्रियजाति से लेकर निर्माण तककी प्रकृतियोंका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । ५६४' देवगतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय और चार नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । पञ्चेन्द्रियजातिसे लेकर निर्माण तक की प्रकृतियों का नियम से बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और देवगत्यानुपूर्वीका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । सब नामकर्मकी प्रकृतियोंका भङ्ग १. ता०प्रतौ 'तं तु० संखेज०मा० एवं' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'जह० मणुसाणु' इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394