Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 371
________________ ३४८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे छदंस०-बारसक०-भय-दुगुं० णि० ब० णि तंतु० अणंतभागब्भहियं । पंचणोक० सिया० तंतु० अणंतभागभहियं०।दोगदि-दोसरीर-समचदु०-दोअंगो०-बजरि०-दोआणु०पसत्थवि०-थिरादितिण्णियुग०-सुभग-सुस्सर-आदे-तित्थ० सिया. तंतु० संखेंजभागन्भहियं० । पंचिंदि०-तेजा-क०-वण्ण०४-अगु०४-तस०४-णिमि० णि. तंन्तु० संखेंजभागब्भहियं० । एवमेदेण कमेण णेदव्वं । __५६१. भवसिद्धिया० ओघं । वेदगे आभिणि भंगो । उवसमस० ओधिभंगो । णवरि देवगदि०४-आहारदुग० घोलमाणगस्स याओ पगदीओ आगच्छंति ताओ असंखेंजगु०। ५६२. सासणे आभिणि. जह० पदे० चदुणा०-णवदंसणा०-सोलसक०-भयदुमु-पंचंत. पि. बं. णि. जह० । दोवेद०-छण्णोक०-मणुस०-मणुसाणु०-उजो.. दोगोद० सिया. जह० । सेसाओ णामपगदीओ' णि तं० तु. सिया० तंतु० भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्त भाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो गति, दो शरीर, समचतुरस्र. संस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, दो आनुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय और तीर्थङ्कर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार इसी क्रमसे शेष सन्निकष ले आना चाहिए। ५६१. भव्यों में ओघके समान भङ्ग है। वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें आभिनिबोधिकज्ञानी जीवांके समान भङ्ग है । उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। इनमें इतनी विशेषता है कि घोलमान योगसे बँधनेवाली देवगतिचतुष्क और आहारकद्विकके साथ जो प्रकृतियाँ आती हैं वे नियमसे असंख्यातगुणे प्रदेशबन्धको लिए हुए होती हैं। ५६२. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें आभिनियोधिक ज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, छह नोकषाय, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, उद्योत और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। शेष नामकर्मकी जो प्रकृतियाँ नियमसे बँधती हैं उनका जघन्य १. ता०प्रती 'सेसदि णामपगदीश्रो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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