Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 382
________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे परिमाणपत्रणा ३५९ ५७५. देवेसु सव्वपगदीणं उक्क० अणु० के० ? असंखेंजा। णवरि मणुसाउ० उक्क० अणु० के० १ संखेजा। एवं सव्वदेवाणं । ५७६. एइंदिय-बादर-सुहुम-पजत्तापज०-सव्ववणप्फदि-णियोद० सव्वपगदीणं उक० अणु० के० १ अणंता । णवरि मणुसाउ० उक्क० अणु० केव० १ असंखेंजा। ५७७. पंचिंदि०-तस०२ पंचणा०-चदुदंसणा०-सादा०-चदुसंज०-पुरिस-जस०तित्थ०-उच्चा०-पंचंत० उक्क० के० ? संखेंजा। अणु० के० १ असंखेंजा । आहार०२ उक० अणु० के० ? संखेंजा। सेसाणं उक्क० अणु० के०१ असंखेंजा । एवं पंचिंदियभंगो पंचमण०-पंचवचि०-चक्खु०-सण्णि त्ति । संख्यात कहे हैं। तथा शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य नहीं करते, इसलिए इनमें शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण संख्यात और अनुत्कृष्ट प्रदशबन्ध करनेवाल जीवों का परिमाण असंख्यात कहा है। शेष कथन सुगम है। ५७५. देवोंमें सब प्रकृतियों का उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण कितना है ? असंख्यात है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुका उत्कृष्ट और अनुउत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण कितना है ? संख्यात है। इसी प्रकार सब देवोंमें जानना चाहिए । विशेषार्थ-देवों में नारकियोंके और उनके अवान्तर भेदोंके समान स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। मात्र सर्वार्थसिद्धि में संख्यात देव होते हैं, इसलिए उनका विचार मनुष्यिनियोंके समान पूर्वमें ही कर आये हैं। ५७६. एकेन्द्रिय तथा उनके बादर और सूक्ष्म तथा इन दोनोंके पर्याप्त और अपर्याप्त, सब वनस्पतिकायिक और सब निगोद जीवोंमें सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। विशेषार्थ-ये सब राशियाँ अनन्त हैं, इसलिए इनमें मनुष्यायुके सिवा सब प्रकतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण अनन्त बन जाता है। मात्र कुल मनुष्य ही असंख्यात होते हैं, इसलिए उक्त मार्गणाओंमें मनुष्यायुका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण असंख्यात कहा है। ५७७. पश्चेन्द्रियद्विक और सद्विक जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, यशःकीर्ति, तीर्थङ्कर, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। आहारकद्विकका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने है ? संख्यात है। शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैअसंख्यात हैं। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय जीवोंके समान पाँच मनोयोगी, पाँच बचनयोगी, चक्षदर्शनवाले और संज्ञी जीवोंमें जानना चाहिए। विशेषार्थ-उक्त मार्गणावाले जीव असंख्यात होते हैं, इसलिए इनमें पाँच ज्ञानावरणादिका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण और शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण असंख्यात कहा है। पाँच ज्ञानावरणादिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण और आहारकद्विकका उत्कृष्ट और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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