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उत्तरपगदिपदेशबंधे परिमाणपरूवणा । अंगो०-दोआणु०-तित्थ जह० के० १ संचज्जा। अजह० के० ? असंखेंज्जा । मणुसाउ०आहार०२ मणुसिभंगो। सेसाणं जह• अह० अजह० के० १ असंखेंजा। सुक्काए पंचणा०णवदंसणा०-सादासाद०-मिच्छ-सोलसक०-णवणोक०-दोगो०-पंचंत० जह० के० ? संखेजा' । अजह० के० । असंखेज्जा । एवं सब्बपगदीणं जाणिदण णेदव्वा ।
५१३. सासणे मणुमाउ० मणुसि०भंगो। सेसाणं जह० अजह० असंखेंजा। सम्मामि० सवपगदीणं जह० अजह ० के० । असंखेंजा । सण्णीसुदेवगदि०४-तित्थ० जह ० के० ? संखेंजा । अजह० के० १ असंखेजा । सेसाणं पंचिंदियभंगो।
एवं परिमाणं समत्तं ।
दो आनुपूर्वी और तीर्थकर प्रकृतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्यायु और आहारकद्विकका भंग मनुष्यिनियों के समान है। शेष प्रकृतियोंका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । शुक्ललेश्या में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सब प्रकृतियों को जानकर ले जाना चाहिए ।
विशेषार्थ-पीत और पद्मलेश्यामें अपने स्वामित्व के अनुसार दो गति आदिका जघन्य प्रदेशबन्ध संख्यात जीव ही करते हैं, इसलिए इनका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण संख्यात कहा है । यही बात शुक्ललेश्यामें पाँच ज्ञानावरण आदिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवों के परिमाणके विषयमें जाननी चाहिए । शेष कथन सुगम है ।
५९३. सासादनसम्यक्त्व में मनुष्यायुका भंग मनुष्यि नियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव असंख्यात हैं । सम्यग्मिथ्यात्वमें सब प्रकृतियोंका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात है। संज्ञियोंमें देवगतिचतुष्क और तीर्थकर प्रकृतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । शेष प्रकृतियोंका भंग पञ्चेन्द्रियों के समान है।
विशेषार्थ--सासादन सम्यक्त्व आदि उक्त मार्गणाओं में भी अपने-अपने स्वामित्वके अनुसार सब प्रकृतियोंका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करने वाले जीवोंका परिमाण घटित कर लेना चाहिए।
इस प्रकार परिमाण समाप्त हुआ।
१ आ. प्रतौ 'असंखेज्जा' इति पाठः ।
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