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महाबँधे पदेसबंधाहिया रे
५८३. णिरएसु सव्वाणं जह० अजह० के० ? असंखेजा । णवरि मणुसाउ० दोपदा संखेजा । तित्थ० जह० के० ९ संखेजा । अजह० के० : असंखेजा । एवं पढमाए । विदियाए याव सत्तमा ति उक्कस्तभंगो ।
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५८४. पंचिंदि० तिरिक्ख पंचिंदि० तिरिक्ख पञ्जत्त० सव्त्रपगदीणं जह० अजह० ho ? असंखेजा । णवरि देवगदि ०४ जह० के० ? संखेजा । अजह० के० ? असंखेखा । एवं जोगिणीसु वि । णवरि वेउव्वि०छकं० जह० अजह० के० ? असंखजा । पंचिदि० तिरि० अपज० सव्वपगदीणं जह० अजह० के० ? असंखेखा । एवं मणुस ०
प्रदेशबन्धका स्वामी ओघके समान नहीं बनता, इसलिए इन मार्गणाओं में तीन आयु और वैकिकपटकका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवांका परिमाण असंख्यात कहा है । यद्यपि तीन आयु और नरकगतिद्विकके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण असंख्यात भोध प्ररूपणा भी कहा है। उससे यहाँ कोई विशेषता नहीं आती पर यहाँ इसे देवगतिचतुष्कके साथ दुहरा दिया है ।
५८३. नारकियों में सब प्रकृतियोंका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने है ? असंख्यात हैं। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुके दोनों पदवाले जीव संख्यात हैं । तथा तीर्थङ्कर प्रकृतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने है ? संख्यात हैं । अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने है ? असंख्यात है। इसी प्रकार प्रथम पृथिवी में जानना चाहिए। दूसरी पृथिवी से लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में उत्कृष्टके समान भङ्ग है ।
विशेषार्थ - नरक में अधिक से अधिक संख्यात जीव ही मनुष्यायुका बन्ध करते हैं, इसलिए यहाँ मनुष्यायुके दोनों पदवालोंका परिमाण संख्यात कहा है। जो सम्यग्दृष्टि मनुष्य मर कर प्रथम नरक में उत्पन्न होते हैं, उनमें से कुछके ही प्रथम समय में तीर्थकर प्रकृतिका जघन्य प्रदेशबन्ध होता है, अतः यहाँ तीर्थङ्करप्रकृतिके उक्त पदका बन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण संख्यात कहा है। तथा निरन्तर असंख्यात जीव नरक में तीर्थङ्कर प्रकृतिका बन्ध करनेवाले पाये जाते हैं, इसलिए यहाँ इसके अजवन्य प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका परिमाण असंख्यात कड़ा है। इनके सिवा अन्य सब प्रकृतियोंके दोनों पदवाले जीव वह असंख्यात होते हैं, यह स्पष्ट ही है। सामान्य नारकियोंके समान प्रथम नरक में प्ररूपणा बन जाती है, इसलिए प्रथम नरकमें सामान्य नारकियोंके समान प्ररूपणा जाननेकी सूचना की है । उत्कृष्ट प्ररूपणाके समय सब प्रकृतियोंके दोनों पदवालोंका परिमाण असंख्यात और मनुष्यायु के दोनों पदवालोंका परिमाण संख्यात बतला आये हैं । यहाँ द्वितीयादि नरकों में यह कथन अविकल बन जाता है, इसलिए इन नरकों में उत्कृष्टके समान परिमाण जानने की सूचना की है।
८४. पञ्चेन्द्रिय तिर्यच और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त जीवोंमें सब प्रकृतियोंका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इतनी विशेषता है- देवगतिचतुष्कका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात है । अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यच योनिनी जीवों में भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें वैक्रियिकपटकका जघन्य और भजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने है ? असंख्यात हैं । पञ्चेन्द्रिय तिर्यव अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ?
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