Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 342
________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सणियामं एवं० अट्टदंस०-मिच्छ०-सोलमक०-णवणोक०-णीचागोदं। णयरि इस्थि०-पुरिसवे० जह० बंध० एइंदियतिगं वज । उजोव० सिया० जहण्णा । ५०९. दोआउ० णिरयभंगो । णवरि तिरिक्खाउ० जह० पदे०६० एइंदियतिग० सिया० असंखेंजगुणब्भहियं । ५१०. तिरिक्ख० जह० पदे०बं० पंचणा०-णवदंसणा-मिच्छ०-सोलसक०भय-दु०-णीचा०-पंचंत० णियमा ५० णियमा जहण्णा । दोवेदणीय-सत्तणोकसायं सिया० जहण्णा । णामाणं सत्थाणभंगो । एवं तिरिक्खगदिभंगो एइंदि०-पंचसंठा०पंचसंघ-तिरिक्खाणु०-आदाउजोव-अप्पसस्थ०-थावर-दूभग-दुस्सर-अणादें । ___५११. मणुसग० जह० ५० पंचणा०-उच्चा०-पंचंत० णियमा० बंध० णियमा जहण्णा । छदंस०-बारसक०-पुरिस०-भय-दु० णि० पं० णि० अजह० अणंतभाग भहियं० । दोवेदणी० सिया० जहण्णा । चदुणोक० सिया० अणंतभागब्भहिय। प्रकार अर्थात् निद्रानिद्राका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके समान आठ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कपाय, नो नोकपाय और नीचगोत्रका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुपवेदका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके एकेन्द्रियजाति आदि तीनको छोड़कर सन्निकर्ष करना चाहिए। वह उद्योतका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इसका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। ५०९. दो आयुओंका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष जिस प्रकार नारकियोंमें कह आये हैं, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए। इतनी विशेपता है कि तिर्यश्चायुका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव एकेन्द्रियजातित्रिकका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे असंख्यातगुणा अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। ५१०. तिर्यञ्चगतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कपाय, भय, जुगुप्सा, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय और सात नोकपायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। नामकर्मकी प्रकृतियोंका भङ्ग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है। इसी प्रकार तिर्यश्वगतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके समान एकेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिए। ५११. मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीयका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । चार नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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