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महाबंधे पदेसबंधाहियारे णामाणं सत्थाण भंगो । एवं मणुसाणु०-तित्थ ।
५१२. पंचिंदि० जह.' पदे०७० पंचणाणावरणी०-पंचंत० णियमा बंधक णियमा जहण्णा। थीणगिद्धि०३-दोवेदणी०-मिच्छ०-अणंताणु०४-इत्थि०-णवूस०दोगोद० सिया० जहण्णा । छदंसणा०-बारसक०-भय-दुगुं० णियमा बंध० तंतु० अणंतभागब्भहिय। पंचणोक० सिया० तं० तु. अणंतभागब्भहियं० । णामाणं सत्थाणभंगो। एवं पंचिंदियजादिभंगो तिण्णिसरीर-समचदु०-ओरालि अंगो०-वजरिस०वण्ण०४-अगु०४-पसत्थ०-तस०४ - थिरादितिण्णियुग० - सुभग-सुस्सर - आदें-णिमि० । एदेण बीजेण याव सव्वट्ठ त्ति णेदव्वं ।
__ ५१३. पंचिंदिय०-तस०२ मृलोघं । पंचमण-तिण्णिवचि० आभिणि. जह० पदे०६० चदुणा०-पंचंत० णियमा बं० णियमा जहण्णा। थीणगिद्धि ०३-दोवेदणीयहै। नामकर्मकी प्रकृतियोंका भङ्ग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है। इसी प्रकार अर्थात् मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके समान मनुष्यगत्यानुपूर्वी और तीर्थङ्करप्रकृतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
५१२. पश्चेन्द्रियजातिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। नामकर्मकी प्रकृतियोंका भङ्ग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है। इसी प्रकार पश्चन्द्रियजातिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके समान तीन शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा आगे सर्वार्थसिद्धिके देवों तक इसी बीज पदके अनुसार अर्थात सौधर्म-ऐशान कल्पमें जिस प्रकार कहा है उसे ध्यानमें रखकर सन्निकर्ष ले आना चाहिए।
५१३. पश्चेन्द्रि यद्विक और सद्विकमें मूलोघके समान भङ्ग है। पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवोंमें आभिनिबोधिकज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद,
१. ता०प्रती 'मणुसाणु । तित्थ पंचंत० जह' आ०प्रतौ मणुसाणु० तिस्थ० । पंचंत० जह' इति पाठः । २. आप्रतौ 'दोवेदणी० अणंतागु०४ इथिः ' इति पाठः। ३. आ०प्रती 'पंचमण पंचवचि. तिम्णिवचि०' इति पाठः ।
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