Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 335
________________ ३१२ महाबंधे पदेसबंधाहियारे णि. जह। पंचिंदि०-ओरालि-तेजा०-क०-ओरालि अंगो०-वण्ण०४ -अगु०४. तस०४-णिमि० णि० बं० अजह० संखेंजभागन्भ० । छस्संठा०-छस्संघ.'-दोविहा०थिरादिछयुग० सिया० संखेंजभागभहियं बंधदि। ४९८. आदेसेण गेरइएसु आभिणि० जह० पदे०६० चदुणा०-णवदंसणा०मिच्छ०-सोलसक०-भय-दु०-पंचंत० णि. बं० णि० जह० । दोवेद०-सत्तणोक०मणुस०-मणुसाणु०-उज्जो०-दोगोद० सिया० जह० । तिरिक्ख०-छस्संठा-छस्संघ०तिरिक्खाणु०-दोविहा०-थिरादिछयुग० सिया० तंतु० संखेंजभागब्भहियं । पंचिंदि० ओरालि-तेजा.-क०-ओरालि.अंगो०-वण्ण०४-अगु०४-तस०४-णिमि० णि. ५० णि० अजह० संखेंजदिभागब्भ०२ । एवं चदुणा०-णवदंस०-दोवेद०-मिच्छ०-सोलसक०णवणोक०-दोगोद०-पंचंत० । णवरि उच्चागो० तिरिक्खगदितिगं वज मणुसगदिदुगं बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, सचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। छह संस्थान, छह संहनन, दो विहायोगति और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। ४९८. आदेशसे नारकियोंमें आभिनिबोधिकज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, सात नोकपाय, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, उद्योत और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जधन्य प्रदेशबन्ध करता है। तियश्चगति, छह संस्थान, छह संहनन, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पश्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार अर्थात् आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये उक्त सन्निकर्षके समान चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष १. ता०प्रतौ संखेजभागभ० । . . . .[छस्संठा ]. छस्सघ.' आ०प्रतौ संखेजभागम्भ०।.. • • • 'छस्स'ठा० छस्स'घ' इति पाठः। २. ता प्रतौ 'तस० णिमि.णिबं० [णि]. ' 'संखेजदिभागभ०' श्रा०प्रतौ० 'तस०४-णिमि.णि बं० णि. अजह० संखेजभागभ०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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