Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 236
________________ उत्तरपगदिपदेस सणियासं २१३ ३२९. लोभसंज. उक० पदे०० पंचणा०-चदुदंस०-सादा०-जस०-उच्चा०पंचंत० णि०० संखेजदिभागणं । ३३०. इत्थि० उक्क० पदेब पंचणा०-चदुदंसणा-पंचिंदि०-तेजा०-क०वण्ण०४-अगु०४-तस०४-णिमि०-पंचंत० णि० ब० संखेज्जदिभागणं० ब० । थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४ णि० ब० णि• उक० । णिहा-पयला-अट्ठक०-भय-दु: णि. अणंतभागणं । सादा०-दोगदि-ओरालि०-हुंड-ओरालि अंगो०-असंप०दोआणु०-उज्जो०-अप्पसत्थ-थिराथिर -सुभासुभ-भग-दुस्सर-अणादें - अजस०-उचा० सिया० संखेज्जदिभागणं बं । असादा० देवग-वेउ वि०-वेउवि०अंगो०-देवाणु०णीचा० सिया० उक्क० । चदुसंज-[ जस० णिहाणिहाए भंगो] | चदुणोक० सिया० अणंतभागणं बं । पंचसंठा-पंचसंघ०पसत्थ० सुभगसुस्सर-आदें सिया ब सिया अब । यदि ० णि. तं० तु. संखेजदिभागणं ।। ३३१. णवंस० उक्क० पदे०ब पंचणा०-चदुदंस-पंचंत० णि'० ब० संखेंजदि__ ३२९. लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संन्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। ___३३०. स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पश्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, निर्माण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । निद्रा, प्रचला, आठ कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । सातावेदनीय, दो गति, औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, दो आनुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयशःकीर्ति और उच्चगोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। असातावेदनीय, देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, देवगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार संज्वलन और यश कीर्तिका भङ्ग निद्रानिद्राके समान है। चार नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पाँच संस्थान, पाँच संहनन, प्रशस्त विहायोगति, सभग, सस्वर और आदेयका कदाचित बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो कदाचित् उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। ३३१. नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शना. धरण, और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन ता. आ. प्रत्यो० 'बसंज. ओघं। पंचसंठा' इति पाठः । २. प्रा०प्रतौ 'पंचणा. वसंज० पंचत०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394