Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 281
________________ २५८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे बं० संखेंजगुणहीणं । मणुस-ओरालि०-ओरालि अंगो०-मणुसाणु-थिराथिरसुभासुभ-अजस० सिया० संखेंजदिभागणं । पंचिंदि०-तेजा.-क०-वण्ण०४अगु०४-तस०४-णिमि० णि० ब० संखेजदिभागणं । समचद ०-पसत्थ०-सुभगसुस्सर-आदें णि०० णि० तंतु० संखेजदिभागणं । देवगदि०४-आहार०२ सिया० संखेंजदिभागणं 4 । जस० सिया० संखेंजगुणहीणं बौं । एवं पयला० । ४१२. चक्खुदं० उक्क० पदे०३० पंचणा०-तिण्णिदंस०-सादा०-चदसंज०उच्चा०-पंचंत० णि. 4 णि० उक्क० । पुरिस-जस० णि० ब० णि तंतु० संखेजगुणहीणं ब। हस्स-रदि-भय-द ०-तित्थ० सिया० उक्क०। वेउब्बि०४आहार०२-समचद ०-पसत्य-सुभग-सुस्सर-आदें. सिया० तं० तु. संखेंजदिमागणं । पंचिंदि०-तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०४-तस०४-थिर-सुभ०-णिमि० सिया० संखेंजदिभागणं ब० । एवं तिण्णिदंस० ।। मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, और अयशःकीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वणेचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, सचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। देवगतिचतुष्क और आहारकद्विकका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। यशःकीतिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार प्रचलाकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। . ४१२. चक्षुदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, तीन दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, उच्चगोत्र और पाँच भन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पुरुषवेद और यशःकीर्तिका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। हास्य, रति, भय, जुगुप्सा और तीर्थकर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। वाक्रायकचतुष्क, आहारकद्विक, समचतुरस्त्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रद शबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पञ्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, स्थिर, शुभ और निर्माणका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार तीन दर्शनावरणको मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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