Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 290
________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं २६७ चदसंज० णि० ५० णि० ० तुदुभागणं ब। तित्थ० सिया० तंतु० संखेजदिभागणं' बं० । एवं चदणा०-पंचंतः। ४२७. थीणगिद्धि०३दंडओ इथिवेदभंगो। णवरि संज० द मागणं। णिद्दापयलाबंधओ इथिवेदभंगो० । णवरि चद संज० णि० दभागणं बं० । बजरि० तित्थ० आभिणि भंगो । चक्खुदं० उक्क० पदे०५० इत्थिवेदभंगो। गवरि चदसंज० णि तंतु० दभागणं बं० । एवं तिण्णं दंस० । सादा० उक० पदे०७० इत्थि. भंगो। णवरि चदुःसंज० णि० बं० तं• तु० दुभागणं । तित्थकरं सिया० तं• तु० संखेजदिभागणं ब० । असाद. इथिभंगो। चद् संज. णि. दुभागणंब । तित्थ० सिया० तंतु० संखेंजदिभागणं । अट्ठक० इत्थिभंगो। णवरि चदुसंज० करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। तीर्थङ्कर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेश बन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार चार ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ४२७. स्त्यानगृद्धित्रिकदण्डकका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि यह संज्वलनका दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। निद्रा और प्रचलाका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि यह चार संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। वर्षभनारांचसंहनन और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग आभिनिबोधिक ज्ञानावरणके समान है। चक्षुदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि चार संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह उनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार तीन दर्शनावरणको मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। सातावेदनीयका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि वह चार संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है | किन्तु इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदशबन्ध करता है। तीथङ्कर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। असातावेदनीयकी मुख्यतासे सन्निकर्ष स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। वह चार संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तीर्थङ्कर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट अन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। आठ कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्प स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता १. आप्रतो 'सिया० संखेजदिमागूणं' इति पाठः। २. प्रा०प्रती 'सिया० सखेजदिभागूणं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394