Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 328
________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं ३०५ दोआणु०-थिरादितिण्णियुग०-तित्थ० सिया० तंतु० संखेंजदिभागणं० । पंचिंदि०तेजा.-क०-समचद ०-वण्ण०४-अगु०४-पसत्थ०- तस०४ - सुभगं-सुस्सर - आर्दै०-णिमि० णि बं० तंतु० संखेंजभागणं । वेउब्बि०अंगो० सिया० तंतु० सादिरेयं दुभागणं। पञ्चक्खाण०४ सिया० तंतु० अणंतभागणं० । चदु संज. णि० बं० णि तंन्तु० अणंतभागूणं । एवं णेदव्वं ।। ४८५. सासणे आभिणि० उक० पदे०५० चदणा०-णवदंस०-सोलसक०'. भय-द् ०-पंचंत० णि० बं० णि. उक्क० । दोवेदणी०-छण्णोक०-दोगदि-वेउन्धिःवेउवि०अंगो०-दोआणु०-उजो०-दोगोद० सिया० उक्क । तिरिक्ख०-ओरालि०पंचसंठा०-ओरालि अंगो०-पंचसंघ०-तिरिक्खाणु० - दोविहा०-थिरादिछयुग० सिया० तं.तु. संखेंजदिमागणं०। पंचिंदि०-तेजा-क०-वण्ण०४-अगु०४-तस०४-णिमि० अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्त्र संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्गका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो नियमसे इसका साधिक दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट. प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार सब सन्निकर्षजानलेना चाहिए। ४८५. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और पाँच यका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, छह नोकषाय, दो गति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, दो आनुपूर्वी, उद्योत और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। तिर्यञ्च गति, औदारिकशरीर, पाँच संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, पाँच संहनन, तिर्यवगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित बन्ध करता है और कदाचित बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनु २. श्रा०प्रतौ 'अगु० पसाथ. १.ता.आ०प्रत्योः 'चदुणा...."सोलसक०' इति पाठः। तस०४ णिमि.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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