Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 325
________________ ३०२ महाबंधे पदेसबंधाहियारे मिच्छ०-अणंताणु०४। ४८२. णिदाए उक्क० पदे०७० पंचणा०-पंचदंस०-पुरिस-भय-दु०-उच्चा०पंचंत० णि. ५० णि. उक्क० । सादासाद०-अपचक्खाण०४-चदुणोक० सिया० उक्क० । पञ्चक्खाण०४ सिया० तंतु० अणंतभागणं । चदुसंज. णिय० तंतु० अणंतभागणं । दोगदि-दोणिसरीर-दोअंगो०-बजरि०-दोआणु०-तित्थ० सिया० तंतु० संखेंजदिमागणं । पंचिंदि०-तेजा०-क०-समचद ०-वण्ण०१४-अगु०४-पसत्थ०-तस०४सुभग-सुस्सर-आदें-णिमि० णि तंतु० संखेजदिभागणं०२। वेउवि अंगो० सिया० तं•तु. संखेंजदिभागणं० । गवरि तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०४-बादर०३णिमि० णि तंतु० णत्थि । ओरालियसरी-थिरादितिण्णियुग० सिया० संखेजदिमिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका सन्निकर्ष कहना चाहिए। ४८२. निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, पाँच दर्शनावरण, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और चार नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशयन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो वह इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो गति, दो शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, दो आनुपूर्वी अ बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्गका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इतनी विशेषता है कि तेजस कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादरत्रिक और निर्माण इन प्रकृतियोंका नियमसे बन्ध होकर भी 'तंतु: पठित बन्ध नहीं होता। औदारिकशरीर और स्थिर आदि तीन युगलका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । इसी प्रकार अर्थात् निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये १. 'श्रा० प्रती तेजाक० वण०४' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'णि [तं तु.] संखेजदि भा०' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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