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महाबंधे पदेसबंधाहियारे ४५१. णिद्दाए दंडओ माण भंगी। णवरि कोधसंज० णि० दभागण। माणसंज० सादिरेय दिवड्डभागणं०। माया-लोभे० पुरिस० णि. संखेंजगुणही० । एवं पयला० ।
४५२. चक्खुदं०दंडओ माणकसाइभंगो। णवरि कोधसंज० सिया० तं•तु० दुभागणं । माणसंज. सिया० तंतु० संखेंजभागहीणं० वा सादिरेयं दिवहभागणं। माया-लोभ. णि० ब० तंन्तु० संखेंजगुणहीणं वा दभागणं वा तिभागणं वा । पुरिस० सिया० तंतु० संखेंजगुणहीणं० । जस० णि तंतु० संखेंजगुणहीणं० । एवं तिण्णिदंस।
४५३. सादं माणकसाइभंगो । णवरि चदुसंज० आभिणि भंगो। आसाददंडओ
४५१ निद्रादण्डकका भङ्ग मानकपायवाले जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव क्रोधसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इसका नियम से दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मानसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इसका नियमसे साधिक डेढ़ भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मायासंजय लोभसंज्वलन और पुरुषवेदका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । इसी प्रकार प्रचलाकी मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए।
४५२. चक्षुदर्शनावरणदण्डकका भङ्ग मानकपायवाले जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि इसका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव क्रोधसंज्वलनका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे दो भागहीन अनुकृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मानसंज्वलन का कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यात भागहीन या साधिक डेढ़ भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। मायासंज्वलन और लोभसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका संख्यातगुणहीन या दो भागहीन या तीन भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पुरुषवेदका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। यशःकीर्तिका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इसका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसा प्रकार अचक्षुदर्शनावरण आदि तीन दर्शनावरणकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
४५३. सातावेदनीय दण्डकका भङ्ग मानकपायवाले जीवांके समान है। इतनी विशेषता है कि चार संज्यलनका भङ्ग आभिनिबोधिक ज्ञानावरणके समान है। अर्थात् यहाँ पर आभिनिबाधिक ज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके चार संज्वलनका जिस प्रकार सन्निकर्ष कहा है उसी प्रकार सातावेदनीयका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके जानना चाहिए। असातावेदनीयदण्डकका भङ्ग मानकपायवाले जीवों के समान है। इतनो विशेषता है
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