Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 272
________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे संण्णियासं २४९ दुस्सर-अणार्दै सिया० तंतु० संखेंजदिभागूणं । तिण्णिसरीर-वण्ण०४-अगु०. उप० णिमि० णि०० तंतु० संखेंजदिभागणं ब। समचदु०-पसत्थ -सुभगसुस्सर-आदें सिया० संखअदिमागणं । एवं दोदंस०-मिच्छ०-अणंताणु०४णस०-णीचा०। ३९३. णिहाए उक्क० पदे० पंचणा-पंचदंस०-बारसक०-पुरिस०-भय-दु०उच्चा०-पंचंत० णि०० णि० उक्क० । दोवेदणी०-चदुणोक०-तित्थ० सिया० उक्क० । देवगदि०४-समचदु०-पतत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदें. णि० ब० तं•तु० संखेंजदिभागणं वं । पंचिंदि० तेजा०-०-वण्ण०४-अगु०४-तस०४-णिमि० णि. ब. संखेंजदिभागणं बं । थिरादितिणियुग० सिया० संखेजदिमागणं ब । एवं पंचदंस०बारसक०-सत्तणोक० । ३९४. इत्थि० उक० पदे०० पंचणा०-थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४पंचंत० णि० ५० णि० उक्क० । छदंस०-बारसक०-भय-दु० णि० ब० णि० अणंतकरता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। तीन शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निमोणक बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है।यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार दो दर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, नपुंसकवेद और नीचगोत्रकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिये। ३९३. निद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, पाँच दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, चार नोकषाय और तीर्थङ्करप्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । देवगतिचतुष्क, समचतुरस्त्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुम्वर और आदेयका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । पञ्चेन्द्रियजाति, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, सचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुकृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । स्थिर आदि तीन युगलका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार पाँच दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकषायकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिये। ३९४. स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धि त्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध Jain Education Interna Ronal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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