________________
महाबंधे पदेसबंधाहियारे छप्पगदीयो च अत्थि । चक्खु०-अचक्खु-ओधिदं० सव्वधादिपदेसग्गस्स तिभागो। एदं सव्वाहि छहि पगदीहि तासिं च तिण्णं पगदीणं इतरासिं छण्णं पगदीणं यं पदेसग्गं तं पदेसग्गं तदेहो चेव भागोणादवो। यद्देहो विणा वि छहि पगदीहि ण हुणवभागो त्तिणादव्वो।
१६६. अण्णदरवेदणीए एगो भागो आगदो सो समयपबद्धस्स अट्ठमभागो त्ति णादव्वो । यो मोहणीयस्स भागो आगदो सो दुधा विरिको-कसायवेदणीए ऍक्को भागो णोकसायवेदणीए ऍको भागो। यो कसायवेदणीए भागो आगदो सो चदुधा विरिको-कोधसंजलणाए ऍक्को भागो । एवं माणसंज०-मायसंज. लोभसंज० । तत्थ यं तं पदेसग्गं सव्वधादिपत्तं तदो एकिस्से संजलणाए कसायवेदणीयस्स सव्वधादिपदेसग्गस्स चदुभागो त्ति णादव्वो। यद्देहो ऍकिस्से संजलणाए कसायवेदणीयस्स सव्वधादिपदेसग्गस्स भागो तबेहो इतरासिं बारसण्णं कसायाणं मिच्छत्तस्स च भागो णादव्यो । अण्णदरणोकसायवेदणीए यो भागो आगदो सो समयपबद्धस्स अट्ठभाग-दुभाग-पंचभागो त्ति' णादव्वो। अण्णदरआउगे यो भागो आगदो, सो समयपबद्धस्स अहमभागो त्ति णादव्वो । चदुण्णं पि पगदीणं ऍको चेव भागो।
१६७. चदुण्णं गदीणं ऍको चेव भागो। पंचण्णं जादीणं ऍक्को चेव भागो । पंचण्णं सरीराणं ऐक्को चेव भागो। एवं छस्संठाणाणं तिण्णिअंगोवंगाणं छस्संघडणाणं ऍक्को चेव भागो। वण्ण-रस-गंध-पस्स-अगु०-उप०-पर-उस्सा०-आदाउजो०-णिमि०भाग मिलता है। यह सब छह प्रकृतियोंके साथ उन तीन प्रकृतियोंका तथा इतर छह प्रकृ. तियोंका जो प्रदेशाग्र है उस प्रदेशाग्रका उन प्रकृतियोंके अनुसार ही भाग जानना चाहिये। छह प्रकृतियोंके बिना जो भाग तीन प्रकृतियोंको मिलता है वह नौ भाग नहीं है ऐसा यहाँ जानना चाहिये।
१६६. अन्यतर वेदनीयके लिये जो एक भाग आया है वह समयप्रबद्धका आठवाँ भाग है ऐसा जानना चाहिय। जो मोहनीयका भाग आया है बह दो भागोंमें वि कषायवेदनीयके लिये एक भांग और नोकषायवेदनीयके लिये एक भाग । जो कषायवेदनीयके लिये भाग आया है वह चार भागोंमें विभक्त होता है। क्रोधसंज्वलनके लिए एक भाग । इसी प्रकार मानसंज्वलन, मायासंज्वलन और लोभसंज्वलनके लिये एक एक भाग । वहाँ जो प्रदेशाग्र सर्वघातिपनेको प्राप्त हुआ है उसमेंसे एक संज्वलन कषायके लिये प्राप्त हुए सर्वघाति प्रदेशाग्रके चार भाग होते हैं ऐसा यहाँ जानना चाहिये। एक संज्वलन कषायके लिये सर्वघाति प्रदेशाप्रका जो भाग मिलता है उतना इतर बारह कषाय और मिथ्यात्वका भाग जानना चाहिए। अन्यतर नोकषायवेदनीयके लिये जो भाग आया है वह समयप्र बद्धके आठवें भागके आधेमेंसे पाँचवाँ भाग जानना चाहिये। चारों ही आयुओंके लिये एक ही भाग मिलता है।
१६७. चारों गतियोंके लिये एक ही भाग मिलता है। पाँच जातियोंके लिये एक ही भाग मिलता है। पाँच शरीरोंके लिये एक ही भाग मिलता है। इसी प्रकार छह संस्थान, तीन आङ्गोपाङ्ग और छह संहननोंके लिये एक एक भाग ही मिलता है। वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छास, आतप, उद्योत, निर्माण, तीर्थङ्कर और स्वर नाम
१.मा०प्रतौ अट्ठभाग पंचभागो सि पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org