________________
१२४
महाबंधे पदेसबंधाहियारे २०८. ओरालिका० पंचणा०-णवदंसणा०-दोवेद०-मिच्छ०-सोलसक०णवणोक०-[दो] गोद०-पंचंत० ज० ५० क० ? अण्ण० सुहुमणिगोदजीवस्स पढमसमयसरीरपञ्जत्तीहि पजत्तय स्स ज०जो० सत्तविधः । णिरय०-देवाउ० ओघं । तिरिक्खमणुसाउ० ज० प० क० ? अण्ण० सुहुमणिगोद० अट्ठविध० जजो० । णिरय०णिरयाणु० ओघं । देवगदिपंचग० ज० प० क० ? अण्ण० मणुस० असंज० पढमसमयसरीरपजत्तीहि पज० एगुणतीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । सेसाणं दंडगादीणं णाणाभंगो। ओरालियमि० ओघं । णवरि देवगदिपंचग० ज० प० क. ? अण्ण० मणुस० सम्मा० पढम०तब्भव० ज०जो० एगुणतीसदि० सह सत्तवि० ।
२०९. वेउन्वियका० पंचणा०-सादासाद०-उच्चा०-पंचत० ज०प० क० ?अण्ण देव० णेरइ० सम्मा० मिच्छा० पढमसमयसरीर'पज्जत्तीए पजत्तगदस्स ज०जो० । णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-णीचा० ज० प० क० ? अण्ण० देव० णेरइ. मिच्छा० पढमसमयपज० ज०जो० । तिरिक्खाउ० ज० प० क० ? अण्ण० देव०
२०८. औदारिककाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयमें शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त हुआ, जघन्य योगसे युक्त और सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला अन्यतर सूक्ष्म निगोद जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । नरकायु और देवायुका भङ्ग ओघके समान है। तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे यत
यक्त अन्यतर सूक्ष्म निगोद जीव उक्त दो आयओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीका भङ्ग ओघके समान है। देवगतिपञ्चकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयमें शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टि उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। शेष दण्डक आदिका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि देवगतिपञ्चकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, जघन्य योगसे युक्त और नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने वाला अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है ।
२०९. वैक्रियिककाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुआ और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव व नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नीचगोत्रके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती पर्याप्त और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव और नारको उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध
१. ता० प्रा०प्रत्योः पढमसमयतब्भवसरीर- इति पाठः । २. ता०प्रती पढमसरीर (समय) पज्जा इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org