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सत्तरपगदिपदेसबंधे मंतरं आहारदुग० मणजोगिभंगो । णिरयगदिदुगं जह० अज० जह० ए०, उक्क० अंतो० । माणे पंचणा०-सत्तदंसणा०-मिच्छ ०-पण्णारसक०-पंचंत० जह० णत्थि अंतरं । अज. जह० उक्क० एग० । सेसाणं कोधभंगो। मायाए पंचणा०-सत्तदंसणा०-मिच्छ०-चोइसक०पंचंत० जह० गत्थि अंतरं । अज० जह० उक्क० ए० । सेसाणं कोधभंगो' । लोभे पंचणासत्तदंसणा०-मिच्छ०-बारसक०-पंचंत० जह० णत्थि अंतरं । अज० जह० उक० एग०। सेसाणं कोधभंगो। जीवोंके समान है । नरकगतिद्विकके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। मानकषायमें पाँच ज्ञानावरण, सात दर्शनावरण, मिथ्यात्व, पन्द्रह कषाय और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग क्रोधकषायवालेके समान है । मायाकषायमें पाँच ज्ञानावरण, सात दर्शनावरण, मिथ्यात्व, चौदह कषाय और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग क्रोधकषायवाले जीवोंके समान है। लोभकषायमें पाँच ज्ञानावरण, सात दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है। शेष प्रकृतियाका भग क्राधकषायवाले जीवोंके समान है।
विशेषार्थ—प्रथम दण्डकमें कही गई पाँच ज्ञानावरणादिका तथा दूसरे दण्डक में कही गई निद्रा आदिका क्रोधकषायके काल में दो बार जघन्य प्रदेशबन्ध सम्भव नहीं है, इसलिए यहाँ इनके जघन्य प्रदेशबन्धके अन्ताकाल का निषेध किया है। तथा प्रथम दण्डकमें कही गई पाँच ज्ञानावरणादिका जघन्य प्रदेशबन्ध होते समय अजघन्य प्रदेशबन्ध नहीं होता, इसलिए यहाँ इनके अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय कहा है। तथा निद्रादिदण्डकमें दो वेदनीय, नौ नोकषाय, तीन गति, पाँच जाति, तीन शरीर, छह संस्थान,
औदारिक आङ्गोपाङ्ग: छह संहनन, दो विहायोगति, सादि दस युगल और दो गात्र ये तो अध्रवबन्धिनी प्रकृतियाँ हैं तथा शेष चार प्रकृतियोंको आठवें गुणस्थानमें बन्धव्युच्छित्ति होकर और अन्तमुहूर्तमें क्रोधकषायके काल में ही मरकर देव होनेपर पुनः इनका बन्ध होने लगता
ए इन प्रकृतियोंके अजघन्य प्रदेशवन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर
कहा है। यहाँ सब प्रकृतियोंका यह जघन्य अन्तर एक समय, एक समय बन्धन कराके या मध्यमें एक समयके लिए जघन्य बन्ध कराके ले आना चाहिए। तिर्यश्चायु और मनुष्यायुका जघन्य प्रदेशबन्ध तृतीय त्रिभागके प्रथम समयमें ही सम्भव है, इसलिए यहाँ इनके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धके अन्तरकालका निषेध किया है। शेष दो आयु और आहारकद्विकका जघन्य प्रदेशबन्ध घोलमान जघन्य योगसे होता है, इसलिए इनका मनोयोगी जीवोंके समान अन्तर कथन वन जानेसे वह उनके समान कहा है। नरकगतिद्विकका एक तो घोलमान जघन्य योगसे जघन्य प्रदेशबन्ध होता है। दूसरे ये परावर्तमान प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर काल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है । मान, माया और लोभकषायवाले जीवोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और -----
१. ता०प्रतौ 'ज. उ. ए. सेसाणं । कोधभंगो' श्रा०प्रती 'जह०ए० उक्क० ए०। सेसाणं कोधभंगो' इति पाठः । २. प्रा०प्रती 'प्रज० जह० एग० उक्क० एग०' इति पाठः ।
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