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उत्तरपगदिपदेसबंधे अंतरं
१७५ भंगो । वेउवि०छ० जह० जह० एग०, उक० पुव्बकोडितिभागं देसू० । अज० जह० एग०, उक्क० अणंतका० । सेसाणं जह० णाणाभंगो। अज० ज० एग०, उक्क० अंतो०।
२६८. आहारगेसु पंचणाणावरणपढमदंडओ जह० जह० खुद्दा० समऊ०, उक्क० अंगुल० असंखें । अज० जह० ए०, उक्क० अंतो० । थीणगिद्धि०३दंडओ' णवंसगदंडओ जह० णाणा०भंगो। अज० ओघं । दोआउ०-दोगदि-दोआणु०-उच्चा० जह० अज० जह० एग०, उक० अंगुलस्स असंखें । णवरि मणुसगदि० जह० जह०
प्रदेशवन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एक पूर्वकोटिका कुछ कम त्रिभागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है। शेष प्रकृतियांके जघन्य प्रदेशबन्धका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।
विशेषार्थ-असंज्ञियों में प्रथम दण्डकका भङ्ग मत्यज्ञानियोंके समान कहनेका कारण यह है कि मत्यज्ञानियों में प्रथम दण्डकके जघन्य प्रदेश बन्धका जो जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण तथा अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय बतलाया है वह यहाँ भी घटित हो जाता है। असंज्ञियोंमें तियञ्चोंकी प्रधानता है, इसलिए चार आयु और मनुष्यगतित्रिकका भङ्ग जैसा तिर्यश्चोंमें बतलाया है वैसा यहाँ भी जान लेना चाहिए । यहाँ वैक्रियिक छहका जघन्य प्रदेश बन्ध आयुबन्धके समय घोलमान जघन्य योगसे होता है, इसलिए इनके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पूर्व कोटिका कुछ कम विभाग प्रमाण कहा है। तथा क तो जघन्य प्रदेशबन्धके समय अजवन्य प्रदेशबन्ध नहीं होता । साथ ही ये सप्रतिपक्ष प्रकृतियाँ है । दूसरे एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय पोयमें रहते हुए इनका अधिकसे अधिक अनन्तकाल तक बन्ध नहीं होता, इसलिए इनके अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल कहा है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी ज्ञानावरणके समान होनेसे इनके जघन्य प्रदेशबन्धका भङ्ग ज्ञानावरणके समान कहा है। तथा ये सब परावर्तमान प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनके अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूते कहा है।
२६८. आहारकोंमें पाँच ज्ञानावरण आदि प्रथम दण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। स्त्यानगृद्धित्रिक दण्डक और नपुंसकवेददण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका भेङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अजघन्य प्रदेशबन्धका भङ्ग ओघके समान है। दो आय, दो गति, दो आनुपूर्वी और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इतनी विशेषता है
१. ताप्रती 'अंगुल असंखे । थीणागिद्धि० ३ दंडओ' इति पाठः । २. तापात्प्रत्योः 'ज. ज. अजः' इति पाठः ।
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