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उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं
१८१ २७४ पच्चक्खाणकोध० बं० तिण्णिक०-भय-दु० णिय० बं० णिय० उक्क० । चदुसंज०-पुरिस०-चदुणोक० अपच्चक्खाणभंगो । एवं तिण्णिकसा० ।
२७५. कोधसंज० उक्क०५०५० माणसंज० णि० बं० णि० अणु० संखेंजदिभागूणं बंधदि । मायासंज-लोभसंज. णि बं० णि० अणु० संखेजगुणहीणं बंधदि । माणसंज० उक्क० पदे०बं० मायासंज० णि वं० णि० अणु० संखेंजदिभागूणं बंधदि । लोभसंज० णि० बं० णि० अणु० संखेंजगुणहीणं बं० । मायाए उक० पदे०बं० लोभ० णि० बं० णिय० अणु० दुभागूणं बंधदि ।
२७६. पुरिस० उक्क० पदे०६० कोधसंज० णियमा अणु० दुभागूणं' बंधदि । करनेवाले जीवके चार संज्वलनीका सन्निकर्ष कहा है, उसी प्रकार यहाँ पर अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीवके इनका सन्निकर्ष जानना चाहिए । इसके मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनका सन्निकर्ष नहीं कहा।
२७४. प्रत्याख्यानावरण क्रोधके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव प्रत्याख्यानावरण मान आदि तीन कपाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे इनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करता है। चार संज्वलन, पुरुषवेद और चार नोकषायोंका भङ्ग अप्रत्याख्यानावरणके समान है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण मान आदि तीन कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिये।
विशेषार्थ-प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी एक जीव है, इसलिए इनका सन्निकर्ष एक समान कहा है। इसके मिथ्यात्व, प्रारम्भकी आठ कषाय, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनका सन्निकष नहीं कहा।
२७५. क्रोध संज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव मान संज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे संख्यातवें भाग हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्धक होता है। माया संज्वलन और लोभसंज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे संख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्टप्रदेशोंका बन्धक होता है। मानसंज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव मायासंज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे संख्यातवें भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्धक होता है। लोभसंज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे संख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्धक होता है। मायासंज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव लोभसंज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्धक होता है।
विशेषार्थ—क्रोधसंज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव शेष तीन संज्वलनोंका, मानसंज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव माया और लोभ संज्वलनका तथा मायासंज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव लोभसंज्वलनका ही बन्ध करता है, इसलिए यहाँ इसी अपेक्षासे सम्भव सन्निकर्ष कहा है। लोभसंज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीवके अन्य प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता, इसलिए उसका अन्य किसीके साथ सन्निकर्ष नहीं कहा।
२७६. पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाला जीव क्रोधसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करता है। मानसंज्वलनका
१. ता.आ०प्रत्योः 'कोधसंज० णीचुच्चा० भागूणं' इति पाठः ।
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