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महाबंधे पदेसबंधाहियारे मणुस०-मणुसाणु० ज० प० क० ? अण्ण० चदुग० घोल० एगुणतीसदि० सह अट्ठविध० ज०जो० । एइंदि०-आदाव०-थावर० ज० प० क० ? अण्ण० तिगदि० छब्बीसदि० सह अट्ठविध० ज०जो० । तिण्णिजादीणं ज० प० क० ? दुगदि० तीसदि. सह अट्ठविध० ज०जो० । सुहुम०-अपज०-साधा० ज० प० क० ? अण्ण० दुगदि० पणवीसदि० सह अट्ठविध० ज० जो०।
२१४. आभिणि-सुद-ओधि० पंचणा०-छदंसणा०-दोवेद०-बारसक०-सत्तणोक०उच्चा०-पंचंत० ज० प० क.? अण्ण० चदुगदि० असंजद० पढमस०तब्भव० सत्तवि० ज०जो० । मणुमाउ० ज० प० क० ? अण्ण देव० जेरइ० घोल० अट्ठवि० ज०जो० । देवाउ० ज० तिरिक्स. मणुस० घोल० अट्टवि० ज०जो० । मणुसग०-पंचिं०-तिण्णिसरीर-समचदु०-ओरा० अंगोवंग०-वारिस०-वण्ण०४-मणुसाणु०-अगुरु०४-पसत्थवि०तस०४-थिरादितिष्णियुग०-सुभग-सुस्सर-आर्दै-णिमि०-तित्थ० ज. प. क. ? अण्ण. देव० णेर० पढमस०तब्भव० तीसदि० सह सत्तवि० ज०जो० । देवगदि०४ ज० प० क० ? अण्णा ० मणुस० असंज० पढम०तब्भव० एगुणतीसदि० सह सत्त वि० स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका घोलमान जीव है । एकेन्द्रियजाति, आतप और स्थावरके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोंका वन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीन जातियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी पञ्चीस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका जीव है।
२१४, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, छह दशेनावरण, दो वेदनीय, बारह कषाय, सात नोकपाय, उजगोत्र औ प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, सात प्रकारके कमांका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका असंयतसम्यग्दृष्टि उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान देव और नारकी मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य घोलमान जीव है। मनुष्यगति, पञ्चन्द्रियजाति, तीन शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थङ्करके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रयम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके काँका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकतियोंके जघन्य प्रदेशवन्धका स्वामी है । देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कोका बन्ध
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