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महाबंधे पदेसबंधाहियारे
पंचिंदियदंडओ
एइंदिय-आदाव- थावरदंडओ सोधम्मभंगो | देवग दि०४ जह० मणुस असं० [पढमतब्भव०] एगुणतीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । [ आहारदुगं अभंग |] एवं पम्माए । णवरि एइंदिय - आदाव० थावरं वा । सुक्काए आणदभंगो | णवरि देवाउ ० - देवर्गादि ० ४ [ आहारदुगं] पम्म भंगो ।
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२२०. वेदगे पंचणा०-छदंसणा०-सादासाद० - बारसक० सत्तणोक ० उच्चा० - पंचंत० ज० प० क० ? अण्ण० दुर्गादि० पढम० तब्भव० ज० जो० । एवं सेसाणं पि ओधिभंग । वरि दुर्गादियस्स त्ति भाणिदव्वं । मणुसगदिदंडओ देवस्स त्ति भाणिदव्वं । २२१. उवसम० पंचणा० दंडओ ज० प० क० ? अण्ण० देवस्स [पढम- ] आहार • पढम० तब्भव० सत्तवि० ज०जो० | देवगदि०४ ज० प० क० १ अण्ण० मणुस ० घोल० एगुणतीस दि० सत्तविध० ज०जो० । आहारदुगं देवगदिभंगो। णवरि एकतीस दि ० | सेसं ओधिभंगो । णवरि णियदं देवस्स कादव्वं ।
२२२. सासण० पंचणा० पढमदंडओ तिगदि० पढम०आहार० पढम० तब्भव ०
पञ्चेन्द्रियजातिदण्डकका भङ्ग सौधर्मकल्पके समान है । देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योग से युक्त अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य है । आहारकद्विकका भङ्ग ओघ के समान है । इसी प्रकार पद्मलेश्यामें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रियजाति, आतप और स्थावरको छोड़कर इनमें जघन्य स्वामित्व कहना चाहिए । शुक्ललेश्या में आनतकल्पके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि देवायु, देवगतिचतुष्क और आहारिकद्विकका भङ्ग पद्मलेश्या के समान है ।
२२०. वेदकसम्यक्त्वमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय बारह कषाय, सात नोकषाय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धको स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार शेष प्रकृतियोंका भी अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँ दो गतिका जीव स्वामी है, ऐसा कहना चाहिए । तथा मनुष्यगतिदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी देव है, ऐसा कहना चाहिए ।
२२१. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में पाँच ज्ञानावरणदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन ? प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, सात प्रकारके कर्मों का बन्ध * करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि देव उक्त प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबन्ध - का स्वामी है । देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर घोलमान मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आहारकद्विकका भङ्ग देवगति के समान है । इतनी विशेषता है कि नामकर्मकी इकतीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाले जीवके इसका जघन्य स्वामित्व कहना चाहिए। शेष भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि जघन्य स्वामित्व नियमसे देवके कहना चाहिए ।
२२२. सासादनसम्यक्त्वमें पाँच ज्ञानावरणदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी प्रथम
१. ता० प्रतौ देवस० ( स्स० ) आहार० प्रा० प्रतौ देव० सम्मा० श्राहार० इति पाठः ।
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