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सामिप्तपरूवणा
प०चं० क० ? अण्ण० तिगदि० पंचिं० सण्णि० मिच्छा० सव्वाहि पञ० पणवीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । आदाउज्जो० उ० प०बं० क० १ अण्ण० तिगदि० पंचिं० सष्णि० मिच्छा० सव्वाहि पञ० छब्बीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । तित्थ ० ० उ० प० बं० क० ? अण्ण० मणुसस्स सम्मादि० सव्वाहि पज० एगुणतीसदिणामाए सह सत्तविध० उक्क० जोगिस्स |
१७३. आदेसेण णेरइएस पंचणा० - सादासाद० उच्चा० पंचंत० उ० प०बं० क० १ अण्ण० मिच्छा० सम्मा० सव्वाहि पज्ज० सत्तविध ० उ०जो० | थीणगिद्धि ०३मिच्छ० - अनंताणु ०४ - इत्थि० - णवुंस०-णीचा० उ० प०बं० क० १ अण्ण० मिच्छा० सव्वाहि पज० सत्तविध० उ० जो० । छदंसणा०-बारसक० सत्तणोक० उ० प०बं० क० १ अण्ण० सम्मा० सव्वाहि पञ० सत्तविध० उ०जो० । तिरिक्खाउ ० उ० प०० क० १ अण्ण• मिच्छा० सव्वाहि पज्ज० अट्ठविध० उ० जो० । एवं मणुसाउ० । णवरि सम्मा०
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स्थिर और शुभके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी पच्चीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर तीन गतिका पचेन्द्रिय संज्ञी मिध्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आतप और उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ, नामकर्म की छब्बीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका पञ्च ेन्द्रिय, संज्ञी, मिथ्यादृष्टि जीव उक्त दो प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर मनुष्य सम्यग्दृष्टि जीव तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है ।
१७३. आदेश से नारकियों में पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, सात प्रकार के कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग से युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और नोचगोत्रके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका खामी है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । तिर्यखायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव तिर्यखायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसीप्रकार मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामित्वं जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि आठ कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योग युक्त अन्तर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि नारकी मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है ।
१. ता०श्रा प्रत्योः तदिय एवं चउत्थीए इति पाठः ।
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