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महाबंधे पदेसबंधाहियारे १८९. असंजदेसु पंचणा०पढमदंडओ चदुगदि० पंचिं० सण्णि० सम्मा० मिच्छा० सत्तविध० उ०जो० । थीणगिद्धिदंडओ चदुगदि० पंचिं० सण्णि. मिच्छा० सव्वाहि पन्ज० उ०जो० । छदंसदंडओ चदुगदि० सम्मादि० उ०जो० । सेसाणं पगदीणं ओघं । चक्खुदंस० तसपज्जत्तभंगो । अचक्खु० ओघं ।
१९०. किण्ण-णील-काउ० पंचणा०-सादासाद०-उच्चा०-पंचंत० उ०प० क० ? अण्ण० तिगदि० सण्णि० सम्मा० मिच्छा० सत्तविध० उ०जो० । थीणगिद्धिदंडओ अण्ण. तिगदि० सण्णि० मिच्छा० सत्तविध० उ-जो० । छदंस दंडओ तिगदि. सम्मा० सव्वाहि पज० सत्तविध० उ०जो० । णिरयाउ० उ० प० क.? अण्ण. दुगदि० सण्णि० मिच्छा० अढविध० उ०जो० । तिरिक्खाउ० उ० प० क० १ अण्ण. तिगदि० सण्णि० मिच्छा० सव्वाहि पन्ज ० अविधबंध० उ०जो० । मणुसाउ० उ० प० क० ? अण्ण. तिगदि० सम्मा० मिच्छा० अढविध० उ०जो० । देवाउ० उ० प० क० ? अण्ण० दुगदि० सम्मा० मिच्छा० अहविध० उ०जो० । णिरयचदुदंडओ तिरिक्खगदिदंडओ मणुसगदिदंडओ देवगदिदंडओ संठाणदंडओ वजरिसभ
१८९. असंयतोंमें पाँच ज्ञानावरण प्रथम दण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका पञ्चेन्द्रिय संज्ञी सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव है। स्त्यानगृद्धिदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका पञ्चेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव है। छह दर्शनावरणदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि जीव है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। चक्षुदर्शनवाले जीवोंमें त्रस पर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है। अचक्षुदर्शनवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है।
१९०. कृष्ण, नील और कापोतलेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका संज्ञी सम्यग्दृष्टि और मिथ्या ष्ट जीव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । स्त्यानगृद्धिदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला ओर उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव है। छह दर्शनावरणदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका सम्यग्दृष्टि जीव है। नरकायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव स्वामी है। तिर्यश्चायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव स्वामी है । मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीव स्वामी है। देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। नरकगतिचतुष्कदण्डक, तिर्यश्चगतिदण्डक, मनुष्यगतिदण्डक, देवगतिदण्डक, संस्थानदण्डक, वर्षभनाराचसंहननदण्डक और परघात व
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