________________
उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं सह अट्ठवि०' जजो० । मणुस०अपज० पंचणा०-णवदंसणा०-दोवेद०-मिच्छ०सोलसक०-णवणोक०-दोगो०-पंचंत० ज० प० क० ? अण्ण० असण्णिपच्छागदस्स त्ति भाणिदव्वं । एवं सव्वपगदीणं । दोआउ ० खुद्दा० ओघं ।
२०२. देवेसु णिरयोघं । णवरि एइंदि०-आदाव-थावर० ज०प०क० ? अण्ण असण्णिपच्छा० पढम० तब्भव० छब्बीसदि० सत्तवि० ज०जो० । एवं भवण०-वाण । तित्थ० वज० । जोदिसि० तं चेव । णवरि पढमसमयतब्भवत्थस्स त्ति भाणिदव्वं ।
२०३. सोधम्मीसाण. पंचणा०-दोवेदणी०-उच्चा०-पंचंत० ज० प० क० ? अण्ण० सम्मा० मिच्छा० पढम०आहार० पढम०तब्भव० ज०जो० । णवदंस०मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-णोचा० ज० प० क. ? अण्ण. मिच्छा० पढम० ज०जो० । दोआउ० णिरयभंगो। तिरिक्ख०-पंचसंठा-पंचसंघ०-तिरिक्खाणु०-उजो०अप्पस०-दूभग-दुस्सर-अणादें ज० प० क० ? अण्ण० मिच्छा० पढम० तीसदि० सह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? असंज्ञियोंमेंसे आकर उत्पन्न हुआ अन्यतर मनुष्य अपर्याप्त उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है ऐसा यहाँ कहना चाहिए। इसी प्रकार सब प्रकृतियोंका जघन्य स्वामित्व कहना चाहिए । दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी ओघके समान क्षुल्लक भवग्रहणके तृतीय विभागका प्रथम समयवर्ती जीव है।
२०२. देवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रियजाति आतप और स्थावरके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है? असंज्ञियोंमेंसे आकर उत्पन्न हुआ, प्रथम समयवती तद्भवस्थ, नामकमेकी छब्बीस प्रकृतियों के साथ सात प्रकारके कर्मो बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर देव उक्त प्रतियों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार भवनवासी और व्यन्तर देवोंमें जानना चाहिए । किन्तु इनम तीर्थङ्कर प्रकृतिको छोड़कर स्वामित्व कहना चाहिए। ज्योतिषियोंमें वही भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थके कहना चाहिए ।
२०३. सौधर्म और ऐशानकल्पमें पाँच ज्ञानावरण, दो वेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती सद्भवस्थ और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशवन्धका स्वामी है। नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय और नीचगोत्रके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। दो आयुओंका भङ्ग नारकियोंके समान है। तिर्यश्चगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि
१. ता.आ०प्रत्योः सह सत्तवि. इति पाठः। २. ता०प्रती आदा० याव० ज० इति पाठः। ३. तापतौ तिरिक्खागु० उ०जो० । अप्प० इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org