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उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं
१७ पंचिं० सण्णि० सम्मा० मिच्छा० सव्वाहि पञ्ज. सत्तविध ० उ०जो० थीणगिद्धिदंडओ ओघं० । छदंसणा०-पुरिस ०-छण्णोक० उ० प००क० १ अण्ण० सम्मा० सव्वाहि पञ्ज. सत्तविध० उ०जो० । अपच्चक्खाण४ ओघं अट्ठक० उ०प०७० क० ? अण्ण संजदासंज. सत्तविध० उ०जो० । तिण्णं आउ० उ० प०० क.? अण्ण. पंचिं० सण्णि० मिच्छा० अढविध० उ०जो० । देवाउ० उ०प०६० क० १ अण्ण० सम्मादि० मिच्छा'
अहविध० उ०जो० । णिरयगदिदंडओ तिरिक्खगदिदंडओ मणुसगदिदंडओ देवगदिदंडओ [चदुसंठा०-पंचसंघ०] ओघं। पर०-उस्सा-पजत्त-थिर-सुभ-जस० मणुसगदिभंगो। आदाउजो० ओघं । एवं पंचिं०तिरि०३।।
१७५..पंचिंतिरि०अपज० पंचणा०-णवदंसणा-सादासाद०-मिच्छ०-सोलसक०णवणोक०-दोगोद०-पंचंत० उ०प० क.? अण्ण० सण्णि० सत्तविध० उ०जो० । दोआउ० उ० प०७० क० १ अण्ण. सण्णि. अहविध० उ०जो० । तिरिक्खगदिदंडओ उ० प०बं० क.? अण्ण० सण्णि. तेवीसदिणामाए' सह सत्तविध० अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर पञ्चेन्द्रिय, संज्ञी, सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि तिर्यश्च उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। त्यानगृद्धिदण्डकका भङ्ग ओघके समान है। छह दर्शनावरण, पुरुषवेद और छह नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है । सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्टयोगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि तिर्यश्च उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। अप्रत्या ज्यानावरण चारका भंग ओघके समान है। आठ कषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सयतासंयत तिर्यञ्च उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। तीन आयुओंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है ? आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर पंचेन्द्रिय, संज्ञी, मिथ्यादृष्टि तिर्यश्च तीन आयुओंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि तिर्यश्च देवायुके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। नारकगतिदण्डक, तियश्चगतिदण्डक, मनुष्यगतिदण्डक और देवगतिदिण्डक चार संस्थान और पाँच संहनन का भङ्ग ओघके समान है। परघात, उच्छास, पर्याप्त, स्थिर, शुभ और यशः कीर्तिका भङ्ग मनुष्यगतिके समान है। आतप और उद्योतका भङ्ग ओघके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च त्रिकमें इसी प्रकार जानना चाहिए।
१७५. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असाताबेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कपाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर संज्ञी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। दो आयुओंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर संज्ञी जीव दो आयुओंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चगतिदण्डकके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी तेईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध
१. ता०प्रतौ-सम्मामि मिच्छा० इति पाठः । २. ता०प्रतौ अग्ण: सविण तेत्तीसदिणामाए श्रा०
प्रतौ अण्ण. तेत्तीसदिणामाए इति पाठः । ___Jain Education Internation१३ For Private & Personal Use Only
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