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महाबंधे परेसचाहियारे
हाणपरूवणा १६९. हाणपरूवणा दुविधा—योगट्ठाणपरूवणा चेव पदेसबंधपरूवणा चेव । एदाओ दो परूवणाओ मूलपगदिभंगो कादव्यो।
सव्व-णोसव्वपदेसबंधआदिपरूवणा १७०. यो सो सव्वबंधो णोसव्वबंधो उक्क० अणुक्क० जह० अजह० णाम एदे यथा मूलपगदिपदेसबंधो तथा कादव्वं । णवरि एदेसिं छण्णं पि बंधगाणं णिरएसु यो सो सव्वबंधो णोसव्वबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो-पंचणा०-चदुदंसणा०-सादावे०-अट्ठक.. पुरिस०-दोगदि-पंचिं०-तिण्णिसरीर-हुंडसं०-ओरा० अंगो०-अप्पसत्थ०४-दोआणु०उज्जो०-दोविहा०-तसादि०४-थिरादिछयुग०-णिमि०-तित्थ०-उच्चा०-पंचंत० किं सव्वबंधो णोसव्वबंधो ? णोसव्वबंधो। सेसाणं किं सव्वबंधो२ १ [सव्वबंधो] णोसव्वबंधो। सव्वाणि पदेसबंधट्ठाणाणि बंधमाणस्स सव्वबंधो । तणं बंधमाणस्स णोसव्वबंधो। एदाओ चेव पगदीओ किं उक्क० अणु० ? अणुक्क बंधो। सेसाणं किं उक्क० . अणु० ? [ उक्कस्स
भागोंमें बँट जाता है । अन्तराय कर्मका द्रव्य पाँच भागोंमें बँट जाता है। मोहनीयके द्रव्यके मुख्य दो भाग होते हैं कषायवेदनीय और नोकषायवेदनीय । कषायवेदनीयका द्रव्य चार भागोंमें और नोकषायवेदनीयका द्रव्य पाँच भागोंमें बन्धके अनुसार विभक्त हो जाता है। वेदनीय, आयु और गोत्र इनके उत्तर भेदोंमेंसे एक कालमें एक-एक प्रकृतिका ही बन्ध होता है, इसलिये इन कर्मो को मिलनेवाला द्रव्य बँधनेवाली उस-उस प्रकृतिको सम्पूर्ण मिल जाता है। यह बीजपद है । इसके अनुसार आगे सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध आदि २४ अधिकारोंके द्वारा उत्तरप्रकृतिप्रदेशबन्धका विचार किया जाता है।
स्थानप्ररूपणा १६९. स्थानप्ररूपणा दो प्रकार की है-योगस्थानप्ररूपणा और प्रदेशबन्धस्थानप्ररूपणा । ये दो प्ररूपणाएँ मूलप्रकृतिबन्धके समान करनी चाहिए ।
सर्ववन्ध-नोसर्वप्रदेशबन्ध आदि प्ररूपणा १७०. जो सर्वबन्ध, नोसर्वबन्ध, उत्कृष्टबन्ध, अनुत्कृष्टबन्ध, जघन्यबन्ध और अजघन्यबन्ध हैं,ये जैसे मूलप्रकृतिप्रदेशबन्धमें कहे हैं उसप्रकार इनका विवेचन करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इन छहों बन्धकोंमेंसे नारकियों में जो सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध है, उसका यह निर्देश है-पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावण, सातावेदनीय, आठ कषाय, पुरुषवेद, दो गति, पञ्चेन्द्रियजाति, तीन शरीर, हुण्डप्संस्थान, औदारिकशरीरआङ्गोपाङ्ग, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, दो आनुपूर्वी, उद्योत, दो विहायोगति, प्रसादि चार, स्थिर आदि छह युगल, निर्माण, तीर्थकर, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इन प्रकृतियोंका क्या सर्वबन्ध है या नोसर्वबन्ध है ? नोसर्वबन्ध है। शेष प्रकृतियोंका क्या सर्वबन्ध है या नोसर्वबन्ध है ? सर्वबन्ध है और नोसर्वबन्ध है। सब प्रदेशबन्ध स्थानोंका बन्ध करनेवालेके सर्वबन्ध होता है और उससे न्यूनका बन्ध करनेवालेके नोसर्वबन्ध होता है। इन्हीं प्रकृतियोंका क्या उत्कृष्टबन्ध होता है या अनुत्कृष्टबन्ध होता है। अनुत्कृष्ट बन्ध होता है। शेष प्रकृतियोंका क्या उत्कृष्टबन्ध होता है या अनुत्कृष्टबन्ध होता है ? उत्कृष्टबन्ध होता है
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